न कभी देखा उसेन कभी मिली उससे..
बँधी एक डोर से ...बस एक शब्द से...... विश्वास
शब्दो का खेल था
एक दाँव मेरा था
एक दाँव उसका
जीत हुई की हार
ये शब्द ही बोलेंगे ....
मिले या बिछड़े ये शब्द ही तोलेन्गे..
मिलन था शब्दो का
जुदाई थी शब्दो की
कमी हुई शब्दो की
लगी चोट तो शब्दो की
कोई आया , गया
बस शब्दो का खेल से
दुनिया चली सारी शब्दो के ही मेल से...........
तुम जाओ तो जाओ
शब्द मेरे पास है
खंजर ना सही एतबार तोड़ने को शब्द के वार है ...