Wednesday, November 26, 2008

उधार

बहुत दिनों से दर्द मिला नहीं कही से,
की कोई नज़्म भी बनती नहीं
सोचा तुझसे बात कर .....
थोड़ा दर्द उधार ले लो..........

खयालो में तुझसे मिल मिल कर थक चली थी
खुदा भी बड़ा मेहरबान हो चला है मुझ पर ...
आंखों को नमी की जरूरत लगी ...
सोचा थोड़े आँसू .........
तुमसे उधार ले लो...

रोज़ रोज़ हँसना मेरी तकदीर हो गई
की सिने में अब जलन नहीं होती....
जलन मिल सके इसलिए करीब आई ...
तुझे जला कर सोचा जलन .......
थोडी उधार ले लो .....

शुक्र है तुमने मुझे देख फिर मुंह फेर लिया
की बीन बोले ही सारा काम कर दिया ...
बस अब तेरी उधार दी नज़्म को किसी कागज़ पर
उतार दू............
शुक्रिया शुक्रिया .........