Tuesday, February 3, 2009

पोटली

ख्यालो की पोटली मेने
आज खोली है ........
आओ तुम भी आओ ,
मेरे ख्याल में आओ

दर्द को भी बुलाया मेने
हसी को भी लब पर
बिठाया मेने ..........

आसूऊं को आँख में .........
जगह देकर ...................
फिर थोडा गुनगुनाया ......

कभी तुम मेरा दामन पकड़ते
तो कभी दर्द......................... ,
कहने को तुम दोनो............
एक दूसरे से जुड़े हो.........
मगर फिर भी दोनो
को बुलाया मेने .......

दरवाजा घर का खोल
भरी दीवारो की सीलन
को सूखने छोड़ा .....

की महकी हवा ने
मेरी सांसो को गहरा किया
तब ठंडी सांसो को
भी बुलाया मेने......

बिस्तर तकिया सब
मेरे थोड़े थोड़े गीले-गीले
से है.............................
ख़यालो की पोटली शायद
पानी से भारी है ये पाया
........................मेंने

घर के कोने में कुछ पुरानी
सी महक है.......................
शायद कोई बरसो पुराना
रिश्ता सड़ गया था.....
उठाकर टटोला तो लगा
अभी उसमे में कुछ .....
ताज़गी बाकी सी........

ये सिर्फ़ ख्याल था मेरा
या घर की हवा उसे
कुछ ताज़ा सा कर गयी ....

आज पोटली खोल सारे
रिश्ते खोल दिए है .....
एक एक यादों के पुलिंदे
की गाँठे खोल दी है मेने

आसुओं में सब शे
को बहा दिया ..........

बस खुद को बचाकर ,
छुपाकर पोटली को
कही दूर फेंक दिया .......... मेने

में और पोटली का रिश्ता
तोड़ दिया है............. मेने