Saturday, July 30, 2011

चाह

क्या फिर वही तुम
5 गज कपड़ा ले आए
चोली और साड़ी ....
क्या कोई लिबास है ??

इतनी से बात पर
तुम तुनक जाते हो
और रूठ कर...
खुद को धुए के छल्लो
में उड़ाते हो..

समझते क्यो नहीं ??
ज़िंदगी साड़ी से आगे
जा चुकी है ..
5 गाज नहीं अब बस 2
मीटर ही कपड़ा काफ़ी
है...

जिसमे कुछ कुछ खुला मन
कुछ कुछ ढका हो....
और मंत्र मुग्ध सुंदरता हो

क्यो इतनी इतनी से
बात पर झिड़क जाते हो
क्या बुराई है इसमे ??
नये फॅशन का दौर
है ..

तुम भी तो करीना
कटरीना ,बिपाशा को
ललचाई नज़रो से देखते हो
और फिर मुझे क्यो हर
बार 5 गज कपड़ा
थमा देते हो...

1 comment:

Pranay said...

एक प्यारी सी कविता जो एक सत्य को दर्शाती है . आज भी इस देश मैं पुरुष अपनी पत्नी को तो कपड़ो मैं ठक के रखना चाहता है.