Saturday, December 15, 2012

बातचीत


मेरी मुहब्बत की तू न आज़माइश कर
माना तेरे साजदे में रोज़ आता नही तेरे 
मंदिर में बैठकर तेरे नाम काबा का नहीं पढ़ता ,
फिर भी तुझसे मेरी रूह जुड़ी है इस बात से 
तो, तू भी अंजान नहीं फिर क्यो नाराज़ है 
तो बात इतनी से है

"तेरे दुनिया के हर रंग में मुझे तू मिल जाता है 
 हर बार इसलिए तेरे मजिस्द मुझसे रह जाता है "










बातचीत बंदे की भगवान से ... जो बड़ी मुश्किल
में है की वो खुदा को हाजरी नहीं दे पाता....

प्रेम

प्रेम कभी सरल न रहा 
जितना डूबा उतना ही उलझा
देखो तो दो रूहों का खेल 
जिसे ना कोई जला सके 
ना भिगो सके , ऐसा
आत्मा का मेल.....

प्यार ने इसे जला दिया ,
खारे पाने ने धो दिया
कुंदन कर दिया, मगर 
इसे....

शेर

अब तेरी तस्वीर देख,दिल को कुछ नहीं होता
लगता है मुहब्बत ने घर बदल लिया ........

Saturday, December 1, 2012

जोगी

जोगी बन, वन वन फिरया 
न ही खुदा लाधया 
न ही माया ..
छडया घर, लभड वास्ते 
कोड़ा सोना भी गया हथ से 
पारस तो कदे मिलया ही नहीं 
आत्मा भी रोज़ धोअड़ जाता है ..
नादिया का पाडी पर मेला 
क्या धोवंगा अब 
न जाडे घडी चीजों 
पर मेल लगी है 
जो कभी धुप में सुखड डाले अंग 
तो धुप भी काली पड़ गयी 
मन खुला तो .. सब घर 
फेल गया .. ..

जोगी बेचारा ऐसा न 
घर मिलया ..
न जंगल ही ने, थले विच 
बिठाया ......

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Hindi translation ..


जोगी बन, वन वन घूमा 
न ही खुदा मिला 
न ही माया ..
छोड़ा घर, ढूढने के लिए 
झूठा सोना भी गया हथ से 

पारस तो कभी मिला ही नहीं 
आत्मा भी रोज़ धोने जाता है ..
नदी का पानी पर मेला 
क्या धोएगा अब 
न जाने कितनी चीजों 
पर मेल लगी है 
जो कभी धुप में सूखने डाले अंग 
तो धुप भी काली पड़ गयी 
मन खोला तो .. सब घर 
फेल गया .. ..

जोगी बेचारा ऐसा, न 
घर मिलया ..
न जंगल ही ने, अपने आंगन 
में बिठाया ......

Hindi translation ..

Friday, October 26, 2012

कुत्ते

नगर निगम की गाड़ी
अचानक आकर रुकी
दौड़ती भागती सड़क पर

उस में से चंद लोग उतरे

कला रंग न था उनका 
न ही बड़ी बड़ी मूच्छे 
न ही कही से वो यमदूत
दिख रहे थ ....पर..


हां सड़क पर आवारा
कुत्ते पकड़ना उनका काम था

न जाने कितने कुत्तो को पकड़ा
वो चाट के ठेले के पास लगी
बेंच के नीचे सोते हुए कालू
को पकड़ा... सड़क पर भागते
हुए भूरे को दबुच लिया
वो बेचारा चंपू कहा बच
पाया ... सब जल्दी जल्दी पकड़े
गये .....

सड़क पर ना जाने कितने
जनवार घूम रहे थ
जो हर औरत को देख
कुछ भौक रहे थ
या लड़कियो को दबोच रहे
थे..

गाड़ी वही आसपास थी
पर गाड़ी वाले लोग नासमझ
थे .. उन्हे इंसान और कुत्ते
में फ़र्क नहीं करना आया

वरना सरकार ने तो ये हुकुम
निकाला था की हर आवारा कुत्ते
को धर लिया जाए..

माटी के पुतले

कुछ  महीने बाद वो आया था... घर.... मिट्टी के पुतले में प्यार का मंतर फूकने आता था ...जिस से जिस्म बँधे रहे और अरमान मचलते रहे ....सुना था उसने, पुतले बोलते नहीं..इसलिए हमेशा पुतले ही ढूँढ लाता था वो..इसको भी पिछले साल एक मेले से लाया था ...बड़ा बाज़ार था ..जिस्म का ..

पर आज वो कुछ बदली बदली नज़र आई उसे .. सांसो के साथ जुड़ी चाँद नन्ही साँसे उसके नाभि से बाहर झाक रही थी...... उसकी सांसो का उपर नीचे होना, किसी और के मचलने का आभास दे रही थी....मगर उसकी हर उमीद टूटती बिखरती दिखाई दे रही थी.....

उसने उसे देखा .. और फिर देखा.. ..कई बार देखा...

चुपचाप से उठा ....मिट्टी पर अपने पैरो के निशान छोड़ता हुआ ... चला गया ...

किसी नये मेले में , मिट्टी की लिए...

Thursday, September 20, 2012

ज़िंदगी

बंद दराज़ में 
बंद चंद ,डायरी के पन्ने
सभी खुद में मुक्मल
कुछ खुद में आधे से
सबकी अपनी ही महक 
सबके अपने ही रंग 
कुछ उसके हिस्से के थे
और कुछ उसके हिस्से थे
कुछ नमी लिए 
कुछ मन से कड़क 
तन्हा वक़्त को काटा कभी
उलझी ज़िंदगी में भीगे कभी
हाथ थाम चलते चलते
छोड़ दिया तो कभी बैईमान
मन से बिगड़ गये ...

कुछ खास नहीं.......
बस बिगड़ी ज़िंदगी के किस्से है

Saturday, September 8, 2012

गुडी





कोरा कपड़ा बुना बुनकर ने
रंगरेज ने बिखेर दिए रंग
हर घड़ी में नया अहसास
बदला हुआ हर लम्हा 
घड़ी ने भी बदले अपने पल
कोई नहीं ठहरा किसी का होकर
फैले औंठ तो कभी सिकुड गये
आँखें भी घड़ियाल से बही
तो कभी बदल ठहर गये
दिल धड़का कभी छोटी से बात पर
कभी रहा बन चट्टान मुश्किल में
कभी कुछ बुनकर ने माँग लिया
तो कभी कुछ रंगरेज़ ने
क़र्ज़ था, दे दिया
जो मिला है वो है
सबक या एहसास पलो का

सब ज्ञान तेरा .... ज़िंदगी
तू ही है सबसे बड़ी गुडी ...

राज़






जानती हूँ, तेरे दिल का रास्ता
तेरी आँखों के पुल से होकर
मेरे दिल से जुड़ जाता है
कुछ इस तरह से तुम मुझे
हर लम्हा याद करते  हो
की मिलो की दूरी एक क्षण की
लगता है जैसे अभी घर के ,
किसी कोने से तुमने मुझे
कहा " सुनो न, याद आ रही है तेरी"

फकत ये दो जिस्मो की बात नहीं
ये राज़ तो कोई गहरा है.............

Wednesday, June 20, 2012

मेरा सौदा

सुबहा सुबहा वक़्त
खुद का सौदा करने
आ खड़ा होता है दर 
पर मेरे .. 
खुद को मेरे हाथ
में रख,मेरा जुनून,
कीमत में माँगता
है और हर बार मुझसे 
शर्त लगता है की वो 
खुद को बेच कर ही 
जाएगा और खुद की 
मनचाही कीमत
भी मुझसे ले जाएगा....

में हर बार उसकी बातो में आकर
उसे खरीद लेती हो पर कीमत
किश्तो में देती हूँ..........

Tuesday, May 29, 2012

उलझन

उलझन में है मन मेरा
की रहा दिखे ना ..मन को
कैसे बहलाओ ..की ख़यालो
की माला मन से छुट्त ना ..
दामन थाम मेरा ...........
आ घुस बैठे है ..............
घुसबैठिए ...................की
कोई तरकीब कहो....कैसे
छोड़ आओ चोकट के पार
तिनको..........चंचल हो मन
हवा से बहता जाए.....बयार
को कैसे बांधो की वो ......
मेरी आँगन की हो जाए |||

Sunday, May 20, 2012

ज़िंदगी,चन्द टेडी मेडी लहरे
बनकर हाथो में सिमटती है

समुंदर हथेली भर का .....

Friday, April 27, 2012

आजकल लेन देन हमने बंद कर दिया है

न वो आते है न ही खत लिखते है
हमने भी उनका इंतज़ार छोड़ दिया है
 
कितने है रंग हर चहरे पर
एक छुपाओ,तो दूजा झँकता है
लगता है रंग बड़े सस्ते है ,,,

सौदा


दिन रात का सौदा
ख़त्म ही नहीं होता
दिन बिक जाता है पर
रात अपनी ही सौदागर
खरीदार बहुत है शातिर
अंधेरो की भी लूटते है
चाहे,सिक्के ने हाथ तोड़
दिया ...

Wednesday, April 4, 2012

फूँक दो मुझ पर कोई ऐसा जादू टोना
न कल ,न आज ,न कल रहे बाकी ..
 
 

Monday, April 2, 2012

नज़्म

जो  नज़्म रात भर सीने में
करवट लेती है वो... अक्सर
सुबह मुझे छोड़ मेरे तकिये
के सिरहाने पड़ी मिलती है ...

सांसो को चीर कर जो आवाज़े
अल्फाज़ो की शक्ल में दुआओं
का जामा पहन बरसती थी ...


अब रातो को वो खामोशी से
बहते नमकीन पानी में तेरी
तस्वीर को धोया करते है.....

ज़िंदगानी

अक्सर में, सोते जागते
खुद को तलाशती हो ..
में वो ही हो या कुछ और
या कोई नयी तेरी कहानी||
जिस देख, तू अक्सर मुँह
फेर लेता है या कुछ डर
कर सिमट जाते हो...

या तेरे पलको पर जनमी
या अजन्मी ..........
आँखों से बरसी तेरे ही
नाम की, बीते पन्नो
पर मुँह ज़ुबानी ज़िंदगानी हो...

Friday, February 17, 2012

रात


आओ कुछ  अंधेरो  से
बातें  कर  ले ..........
नींदों  को   चुराकर   
तकियों  में  भर  दें ||

ये  काली   काली  रातें  .......
चाँद  के  साथ  टहलती  हैं
झाड़ियों 
  जंगलों  से  छुपते -
छुपाते  सहर   की  किनारे  मिलती  हैं ||

आँखों  के  बंद  होते  बड़े  दरवाजों में 
तुम  जल्दी  से  छुप  जाओ ............
देखो  ना  रात  पर  भी  सूरज  का  पहेरा  हैं ||