बंद दराज़ में
बंद चंद ,डायरी के पन्ने
सभी खुद में मुक्मल
कुछ खुद में आधे से
सबकी अपनी ही महक
सबके अपने ही रंग
कुछ उसके हिस्से के थे
और कुछ उसके हिस्से थे
कुछ नमी लिए
कुछ मन से कड़क
बंद चंद ,डायरी के पन्ने
सभी खुद में मुक्मल
कुछ खुद में आधे से
सबकी अपनी ही महक
सबके अपने ही रंग
कुछ उसके हिस्से के थे
और कुछ उसके हिस्से थे
कुछ नमी लिए
कुछ मन से कड़क
तन्हा वक़्त को काटा कभी
उलझी ज़िंदगी में भीगे कभी
हाथ थाम चलते चलते
छोड़ दिया तो कभी बैईमान
मन से बिगड़ गये ...
कुछ खास नहीं.......
बस बिगड़ी ज़िंदगी के किस्से है
उलझी ज़िंदगी में भीगे कभी
हाथ थाम चलते चलते
छोड़ दिया तो कभी बैईमान
मन से बिगड़ गये ...
कुछ खास नहीं.......
बस बिगड़ी ज़िंदगी के किस्से है