Thursday, September 20, 2012

ज़िंदगी

बंद दराज़ में 
बंद चंद ,डायरी के पन्ने
सभी खुद में मुक्मल
कुछ खुद में आधे से
सबकी अपनी ही महक 
सबके अपने ही रंग 
कुछ उसके हिस्से के थे
और कुछ उसके हिस्से थे
कुछ नमी लिए 
कुछ मन से कड़क 
तन्हा वक़्त को काटा कभी
उलझी ज़िंदगी में भीगे कभी
हाथ थाम चलते चलते
छोड़ दिया तो कभी बैईमान
मन से बिगड़ गये ...

कुछ खास नहीं.......
बस बिगड़ी ज़िंदगी के किस्से है

Saturday, September 8, 2012

गुडी





कोरा कपड़ा बुना बुनकर ने
रंगरेज ने बिखेर दिए रंग
हर घड़ी में नया अहसास
बदला हुआ हर लम्हा 
घड़ी ने भी बदले अपने पल
कोई नहीं ठहरा किसी का होकर
फैले औंठ तो कभी सिकुड गये
आँखें भी घड़ियाल से बही
तो कभी बदल ठहर गये
दिल धड़का कभी छोटी से बात पर
कभी रहा बन चट्टान मुश्किल में
कभी कुछ बुनकर ने माँग लिया
तो कभी कुछ रंगरेज़ ने
क़र्ज़ था, दे दिया
जो मिला है वो है
सबक या एहसास पलो का

सब ज्ञान तेरा .... ज़िंदगी
तू ही है सबसे बड़ी गुडी ...

राज़






जानती हूँ, तेरे दिल का रास्ता
तेरी आँखों के पुल से होकर
मेरे दिल से जुड़ जाता है
कुछ इस तरह से तुम मुझे
हर लम्हा याद करते  हो
की मिलो की दूरी एक क्षण की
लगता है जैसे अभी घर के ,
किसी कोने से तुमने मुझे
कहा " सुनो न, याद आ रही है तेरी"

फकत ये दो जिस्मो की बात नहीं
ये राज़ तो कोई गहरा है.............