कुछ महीने बाद वो आया था... घर.... मिट्टी के पुतले में प्यार का मंतर फूकने आता था ...जिस से जिस्म बँधे रहे और अरमान मचलते रहे ....सुना था उसने, पुतले बोलते नहीं..इसलिए हमेशा पुतले ही ढूँढ लाता था वो..इसको भी पिछले साल एक मेले से लाया था ...बड़ा बाज़ार था ..जिस्म का ..
पर आज वो कुछ बदली बदली नज़र आई उसे .. सांसो के साथ जुड़ी चाँद नन्ही साँसे उसके नाभि से बाहर झाक रही थी...... उसकी सांसो का उपर नीचे होना, किसी और के मचलने का आभास दे रही थी....मगर उसकी हर उमीद टूटती बिखरती दिखाई दे रही थी.....
उसने उसे देखा .. और फिर देखा.. ..कई बार देखा...
चुपचाप से उठा ....मिट्टी पर अपने पैरो के निशान छोड़ता हुआ ... चला गया ...
किसी नये मेले में , मिट्टी की लिए...
पर आज वो कुछ बदली बदली नज़र आई उसे .. सांसो के साथ जुड़ी चाँद नन्ही साँसे उसके नाभि से बाहर झाक रही थी...... उसकी सांसो का उपर नीचे होना, किसी और के मचलने का आभास दे रही थी....मगर उसकी हर उमीद टूटती बिखरती दिखाई दे रही थी.....
उसने उसे देखा .. और फिर देखा.. ..कई बार देखा...
चुपचाप से उठा ....मिट्टी पर अपने पैरो के निशान छोड़ता हुआ ... चला गया ...
किसी नये मेले में , मिट्टी की लिए...
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