Sunday, October 6, 2013

सरल -कठिन

निर्मल, पारदर्शी
पानी बह जाता है
कुछ भी तो नहीं
न आर न पार

सरल बहुत सरल..

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कुछ भी न रहना
कुछ भी न होना

कठिन बहुत कठिन

सौगात

ता-उम्र एक ही बात कहता रहा
प्यार नहीं उसको मुझसे

सौगात में, उम्र किश्तो में देता रहा मुझको..

प्रेम

मिश्री सा मीठा
कुछ देर ज़ुबान पर ठहरा
फिर खारा पानी
बन आँख से बह गया .. प्रेम

Saturday, October 5, 2013

इश्क़

मिश्री की डली
खारा पानी,  इश्क़

दिल की ठेस
औंठ की मुस्कान, इश्क़

नीम सा कड़वा
शहद सा ठहरा, इश्क़

जलती धूप
चाँदनी सा ठंडा ,इश्क़

आँख में ठहरा सागर
दिल का मीठा दरिया, इश्क़

न जाने कितनी आवाज़े
और खामोशी है, इश्क़

लम्हो में कटा
वक़्त में फँसा, इश्क़

कभी आग
कभी पानी ,इश्क़

मैं बीत चुकी
और ठहरा रहा, इश्क़

Thursday, April 11, 2013

प्यास

कोई जिस्म टटोलता है
कोई रूह को ढूंढता है
कोई भटकता है
यहाँ, वहाँ .
हज़ार दर,
हज़ार दरगाह
पूजता है ..
हज़ार सवाल का
जादू सा कोई
जवाब ढूंढता
है ..
सब खोये है
इस दौड़ में
सब उलझे है
समुंदर मंथन में
विष किसी को नहीं चाहिए
बस अमृत की प्यास है

क्यो शिवा दूसरा शिव नहीं बनाता

संडल

उस दिन जगमगाती कंक्रीट
की सड़क पर वो पैर
ढपक ढपक कर चल
रही थी

सोती सड़क की धड़कने
सुना रही थी
या सोई धड़कनो
को जगा रही थी

उँची हील का संडल उसे
किसी ने उतरण में दिया था..
तुम्हे खोकर पाना या पाकर खोना
सिलसिला वही, बस खुद को खोना...
कुछ लकीरो में तुम्हे ढूँढा,फिर
कुछ पन्नो पर लकीरे बना दी

कोई कहानी नहीं बनती लकीरो के बिना...

तारे

उसने कहा की मेरे तारे कुछ ठीक नहीं,
दीवारो का रंग बदल दो,हरा कर दो उन्हे

पैर में बँधती हूँ चार ओँगलियो में
और कुछ बाजू में बाँध रखे है
हरे धागे

वो क्या रंग पहनता है तारे बताने के लिए

Tuesday, February 19, 2013

पाप या पुण्य

आसमान के उड़ते परिंदे
को आँगन में उतार
लेती हूँ....
"दाना चुगा या नहीं "..
बस इतना ही पूछती हूँ
और दिल आराम से मुस्करा
जाता है........
पर अब ये बताओ

ये है क्या ....... पाप  या पुण्या..
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वो मेरे घर का पीछे वाला
दरवाज़ा खटखटाता है...
कहता है आकर मुझे
तुम्हारी इबादात करनी है
में चुपके से अंदर ले
लेती हूँ और रात मेरी
सुकून की नींद में
जाती है............

वो आँखो में मुझे रख
इबादात करता रहा रात भर....

पाप और पुण्या को कैसे तोलो
ये समझाओ .........
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नन्हा फरिश्ता जब रोता है
हाथ मेरा कुछ उधेड़ बुन
में रहता है ....
दिल, उसके रोने से छलनी
सा होता है ...
मगर ज़ुबान कह देती है
सता डाला है इसने मुझे....

माँ का दर्द .....पाप या पुण्य ...
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सड़क पर दौड़ती भीड़ में
वो तन्हा खड़ा ..........
आँखे नाम और सूखी
किसी की इंतज़ार में
भूख ने उसे आधा मारा
तो आधा मेने..

दस का नोट देकर
जीने का समान इकट्ठा
करने को कहा .......

ना जाने ये क्या है, मेरा
पाप या तुम्हारा पुण्य ....
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बहुत बड़ी इमारत है
दिन इनका खर्चा ही नहीं
होता ..
बिना करोड़ो के मुनाफ़े  के..

सिने में दिल धड़कता है
जिस्म में आत्मा भी है ...
जेब में समय टिकता नहीं

चाँद सिक्के आश्रम को देकर
वो अपना ज़मीर खरीदता है

ना जाने कैसे हिसाब रखते है
देकर और लेकर पाप पुण्या का
सौदा कर लेते है...
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ट्रेन सज गयी
नयी दुल्हन से
आधी रात को .
पिया मिलन से
ज़्यादा बेताबी है
चूल्‍हे में जलती आग
की...
अपने खोखले शरीर को
भर दिया गहनो से
चाँद  से सिक्के भरने के लिए
आटे के डिब्बे में

रोज़ प्रेम में नहाती है वो
पुण्या की गठरी लिए हुए

मगर ये पाप या पुण्य...