आसमान के उड़ते परिंदे
को आँगन में उतार
लेती हूँ....
"दाना चुगा या नहीं "..
बस इतना ही पूछती हूँ
और दिल आराम से मुस्करा
जाता है........
पर अब ये बताओ
ये है क्या ....... पाप या पुण्या..
***************
वो मेरे घर का पीछे वाला
दरवाज़ा खटखटाता है...
कहता है आकर मुझे
तुम्हारी इबादात करनी है
में चुपके से अंदर ले
लेती हूँ और रात मेरी
सुकून की नींद में
जाती है............
वो आँखो में मुझे रख
इबादात करता रहा रात भर....
पाप और पुण्या को कैसे तोलो
ये समझाओ .........
***************************
नन्हा फरिश्ता जब रोता है
हाथ मेरा कुछ उधेड़ बुन
में रहता है ....
दिल, उसके रोने से छलनी
सा होता है ...
मगर ज़ुबान कह देती है
सता डाला है इसने मुझे....
माँ का दर्द .....पाप या पुण्य ...
*******************************
सड़क पर दौड़ती भीड़ में
वो तन्हा खड़ा ..........
आँखे नाम और सूखी
किसी की इंतज़ार में
भूख ने उसे आधा मारा
तो आधा मेने..
दस का नोट देकर
जीने का समान इकट्ठा
करने को कहा .......
ना जाने ये क्या है, मेरा
पाप या तुम्हारा पुण्य ....
**********************
बहुत बड़ी इमारत है
दिन इनका खर्चा ही नहीं
होता ..
बिना करोड़ो के मुनाफ़े के..
सिने में दिल धड़कता है
जिस्म में आत्मा भी है ...
जेब में समय टिकता नहीं
चाँद सिक्के आश्रम को देकर
वो अपना ज़मीर खरीदता है
ना जाने कैसे हिसाब रखते है
देकर और लेकर पाप पुण्या का
सौदा कर लेते है...
***************************
ट्रेन सज गयी
नयी दुल्हन से
आधी रात को .
पिया मिलन से
ज़्यादा बेताबी है
चूल्हे में जलती आग
की...
अपने खोखले शरीर को
भर दिया गहनो से
चाँद से सिक्के भरने के लिए
आटे के डिब्बे में
रोज़ प्रेम में नहाती है वो
पुण्या की गठरी लिए हुए
मगर ये पाप या पुण्य...
को आँगन में उतार
लेती हूँ....
"दाना चुगा या नहीं "..
बस इतना ही पूछती हूँ
और दिल आराम से मुस्करा
जाता है........
पर अब ये बताओ
ये है क्या ....... पाप या पुण्या..
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वो मेरे घर का पीछे वाला
दरवाज़ा खटखटाता है...
कहता है आकर मुझे
तुम्हारी इबादात करनी है
में चुपके से अंदर ले
लेती हूँ और रात मेरी
सुकून की नींद में
जाती है............
वो आँखो में मुझे रख
इबादात करता रहा रात भर....
पाप और पुण्या को कैसे तोलो
ये समझाओ .........
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नन्हा फरिश्ता जब रोता है
हाथ मेरा कुछ उधेड़ बुन
में रहता है ....
दिल, उसके रोने से छलनी
सा होता है ...
मगर ज़ुबान कह देती है
सता डाला है इसने मुझे....
माँ का दर्द .....पाप या पुण्य ...
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सड़क पर दौड़ती भीड़ में
वो तन्हा खड़ा ..........
आँखे नाम और सूखी
किसी की इंतज़ार में
भूख ने उसे आधा मारा
तो आधा मेने..
दस का नोट देकर
जीने का समान इकट्ठा
करने को कहा .......
ना जाने ये क्या है, मेरा
पाप या तुम्हारा पुण्य ....
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बहुत बड़ी इमारत है
दिन इनका खर्चा ही नहीं
होता ..
बिना करोड़ो के मुनाफ़े के..
सिने में दिल धड़कता है
जिस्म में आत्मा भी है ...
जेब में समय टिकता नहीं
चाँद सिक्के आश्रम को देकर
वो अपना ज़मीर खरीदता है
ना जाने कैसे हिसाब रखते है
देकर और लेकर पाप पुण्या का
सौदा कर लेते है...
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ट्रेन सज गयी
नयी दुल्हन से
आधी रात को .
पिया मिलन से
ज़्यादा बेताबी है
चूल्हे में जलती आग
की...
अपने खोखले शरीर को
भर दिया गहनो से
चाँद से सिक्के भरने के लिए
आटे के डिब्बे में
रोज़ प्रेम में नहाती है वो
पुण्या की गठरी लिए हुए
मगर ये पाप या पुण्य...