Thursday, April 11, 2013

प्यास

कोई जिस्म टटोलता है
कोई रूह को ढूंढता है
कोई भटकता है
यहाँ, वहाँ .
हज़ार दर,
हज़ार दरगाह
पूजता है ..
हज़ार सवाल का
जादू सा कोई
जवाब ढूंढता
है ..
सब खोये है
इस दौड़ में
सब उलझे है
समुंदर मंथन में
विष किसी को नहीं चाहिए
बस अमृत की प्यास है

क्यो शिवा दूसरा शिव नहीं बनाता

संडल

उस दिन जगमगाती कंक्रीट
की सड़क पर वो पैर
ढपक ढपक कर चल
रही थी

सोती सड़क की धड़कने
सुना रही थी
या सोई धड़कनो
को जगा रही थी

उँची हील का संडल उसे
किसी ने उतरण में दिया था..
तुम्हे खोकर पाना या पाकर खोना
सिलसिला वही, बस खुद को खोना...
कुछ लकीरो में तुम्हे ढूँढा,फिर
कुछ पन्नो पर लकीरे बना दी

कोई कहानी नहीं बनती लकीरो के बिना...

तारे

उसने कहा की मेरे तारे कुछ ठीक नहीं,
दीवारो का रंग बदल दो,हरा कर दो उन्हे

पैर में बँधती हूँ चार ओँगलियो में
और कुछ बाजू में बाँध रखे है
हरे धागे

वो क्या रंग पहनता है तारे बताने के लिए