Tuesday, September 16, 2014

वृत

छोड़ दो जाने दो 
जहाँ जाना है, 
तुम बैठो
और देखो बकरियाँ
कहाँ कहाँ घूम रही है
घूमना आदत है 
और वही पुँहचना
जहाँ से चले थे
पृथ्वी की नियति

एक वृत ही तो है 
प्रारंभ और अंत

No comments: