Wednesday, October 29, 2014

सुनहरी रोशनी

जब  सूरज थक चुका होगा और
टिमटिमाकर बुझ रहा होगा , तब
देखना  ये जहान , मेरी  चमक  से
ही रोशन हो  रहा होगा। ....

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कभी कभी दूर तक  फैली
सड़के  न  जाने क्यों घुँघरू
सी बजती है

कोई बैल गाड़ी  आ रही  है
 उसके गले में बंधे कई
घुँघरू  बज बज कर रास्ता
माँगते  हो  जैसे


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वो   सुनहरी  शाम  सड़क
के उस पार कच्चे  रास्ते से
जब हम तुम निकलते थे

तब  गाँव के सभी  मंदिरो
 में घंटी बजा करती थी
सब एक दूसरे  के  बीच
घुसकर  उसको  मनाते  थे

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सूरज  अब थक गया है जल बुझ कर
सोचा अब  दिया लगा   दूँ , किसी
ऊंची  दीवार पर तो  रोशन हो सके
अँधेरा। ..

तुम ,  अब  मेरे और  मन के बीच  कहाँ

एक  सुनहरी रोशनी






Wednesday, October 15, 2014

प्रेम

प्रेम तुम कहते हो, प्रेम है, मैने पूछा, कहाँ, बताओ न ..??
देखो वो लाल रंग का फूल कितना सुंदर है मन को बहा गया अपने ही रंग से
मैं रुक गयी हूँ उसे देखने, अपने मन को बहलाने के लिए उसे तोड़ लूँगी
कभी बालो में लगाओंगी या घर में सज़ा दूँगी | 
पर तुम कहते हो ये प्रेम है प्रेम प्रभावित करता है जैसे आकर्षण की कोई वस्तु,
आकर्षण, वो नही ठहराता ..प्रेम के लिए प्रेम का होना ज़रूरी है
ढूंढते है कहा रख कर भूल गये प्रेम
ठहरा और चंचल मन दोनो ही प्रेम ढूंढते है कैसे अजीब बात है मन एक से है
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किसान ज़मीन को बीज दे रहा है और ज़मीन बिना किसी विरोध के उसे अपने में गुन रही है और एक दिन अंकुरित बीज प्रेम कहानी कहेंगे,कहेंगे की मिट्टी में प्रेम
बिना कुछ बोले मिट्टी ने बीज से प्रेम कर लिया |
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मुझे बार बार तुम्हे क्यो कहना पड़ता है सुनो तुम प्रेम हो , न कहने पर प्रेम ठहरेगा नहीं?? क्या कोई बात कहना इतना ज़रूरी है ?
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पता है जब नानी दादी थी
तो मुझे घर की हर दीवाल पर प्रेम
का रंग चड़ा हुआ मिलता था
दीवाली पर तो प्रेम ही चड़ता था
ना जाने कौन कौन से रंग
लोग ले आते थे पर वो उनके हाथ
लगते ही सारे रंग सुर्ख प्रेम होता था
वो बड़े बड़े रंग रेज़ थे
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मेरी माँ जब आईने में सूरत
देखती थी तो आईना उन्हे अक्सर
उन्हे ढूंढता था बड़ी शिकायत थी
उस आईने को, हर वक़्त सिर्फ़ मेरे
पिता का ही अक्स दिखा पाता था
चाहकर भी माँ नहीं ढूँढ पाया
सुना है साथ साथ रहने वाले दो लोग एक जैसे हो जाते है कुछ
सालो के बाद ..
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सुनो ना तुम जल्दी जल्दी ढूँढो..
कहा रख दिया ..किस आले में किस
अलमारी में रख दिया तुमने प्रेम
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मेरे बगीचे में पक्षी आ गये है
बहुत भूखे होंगे और मुझे आवाज़े दे रहे है
उन्होने मुझसे कभी नहीं कहा पर बस यूँही
रोज़ मुलाकात कर लेते है ,न जाओ तो
आवाज़े देते है
चलो मैं जाती हूँ तब तक तुम प्रेम ढूँढ लो कही ना
कही तुम रखकर भूल गये हो ..ढुंढ़ो न...

Wednesday, October 8, 2014

इंतज़ार

इंतज़ार वो बिखरे पल
जो चलते रहते है
चुपचाप से,या रेंगते  है
जैसे चीटीयाँ  अपने खाने
की तलाश में एक जगह
से दूसरी जगह जाती है

इंतज़ार के अंत का छोर
भी वहीं कहीं पड़ा होता है
सुस्ता सा  पथरा रहता है
जहाँ से कोई गया था
वापस आने के लिए
या कभी ना आने के लिए

खामोश सड़के  ..खामोश इंतज़ार 

गलियाँ

न जाने किन गलियों
से गुज़रे थे न जाने
किन रस्तो से ,
कुछ याद नही

जाने कहाँ कहाँ
 निशान छूटे
है

तुम्हारे  कदमो के
आस पास ही होंगें
मेरे कदमो के निशान 

Tuesday, October 7, 2014

दौड़

सब भीड़ मे दौड़ रहे
रहे है न जाने किस चाहा में
न जाने किस उलझन में
ज़िंदगी
घर की छत पर मकड़ा
व्यस्त है जाल बुनने में
सभी रिस रहे है थोड़ा थोडा

Monday, October 6, 2014

साहूकार

इस बार की दिवाली पर
मुझे  साहूकार ढूँढना  होगा
करने होंगे कुछ सौदे  ,उसके साथ ,
जिससे दिया  जलाऊँ , मैं
दिल के

कह दूँगी ये मन रखकर
कुछ बेमतलब की हंसी और
ठहाके  मुझे दे दो , बहुत दिन हुए
जोर से हँसे हुए

 बेकार के बेवजह के
रिश्तो में सब जमा पूंजी खर्च
कर दी है कुछ भी बचा  नहीं
बनते बिगड़ते रिश्तो  के 
खेल  में, ये  समझता ही नहीं
तो ऐसा किस  काम का ये  मन 

सोचती हूँ  बेच ही दूँ   कही 
कोई अच्छे  दाम ही मिल जाए


क्या कोई साहूकार पता है तुम्हे  ??

Friday, October 3, 2014

केक्टस

क्यो उन दिनो केक्टस सी हो जाती है
वो, जो सिर्फ़ घर के के कोने में रहती है
जिसे छुआ नहीं जा सकता
दूर से देखा जा सकता
हज़ारो काँटे उग आते है अचानक से
भगवान की चौखट सीमा दुश्मन
की , सारा जग वैरी
किसान क्यों मिट्टी के साथ
खेलता है इतना
बार बार उल्ट पुलट करता
बीज बोने से पहले ,
मिट्टी की अशुद्धि से क्यो
नहीं परे होता है वो
भविष्य में बीज रोपित हो
फलीभूत हो
नश्वर धरती की निरंतरता
के लिए
पाप पुण्य से परे है औरत

हाल

ये अजीब सा हाल कर गये हो तुम
कहा था संतूर की तारो पर नया चित्र रंगने को 
पानी की तरंगो पर कौनसा नया राग छेड़ दिया

क्यों कुछ कहूँ??

तुमसे कहती हूँ ,सुनो
नासमझ लोग ऐसे ही
अटकते है उन झाड़ियो में भी
जिनमे काँटे नहीं होते
तुम सब समझते हो ,पर
फिर सोचती हूँ ,क्यों कुछ कहूँ??

भूल जाती हूँ न

मैं सब भूलने
लगी हूँ, भूल जाती हूँ
की मैं क्यों कमरो के
दीवालो से बात कर रही हूँ
क्या चाहिए था जो उनसे 
पूछ रही हूँ भूल जाती हूँ न
जब तुम आवाज़ देते हो तो
तुम्हारे बिखरी
आवाज़ो को समेटना
भूल जाती हूँ धड़कन
को सुनना या
किसी कोने से
आवाज़ देकर,जब
कहते हो की तुम्हे
मुझसे प्यार है
तब सोचती हूँ क्या
जवाब दूँ
"क्या सचमुच
मुझे तुमसे प्यार है " ...

अलविदा

अलविदा .. आहा!! कितना प्यारा शब्द है .. एक नये जीवन की तैयारी , एक नये ख्याल की तैयारी , एक नये अनुभव की तैयारी , बंधन अक्सर बाँध देता है उड़ने से रोक देता है नयी सोच के दरवाज़े बंद कर देता है पर अलविदा नये रंग भरने का एक नया मौका देता है अलविदा बहुत प्यारा शब्द है एक उत्सव करने का मौका ..खुशी से झूमने का मौका की दुबारा नये रंग चुनने का मौका मिला है.. अलविदा जीवन में बना रहे ..अलविदा..