Friday, November 28, 2014

याद

तुम यादों के शहर में रहती हो। … गोया ,जब भी सिगरेट जलाता हो ,तुम बहुत याद आती हो ॥ 
उस दिन भी इतनी ही कड़ाके  की सर्दी थी जब  तुम  इस मौसम का मिज़ाज बदलना चाहा , तुमने कहा
सिगरेट न पिया करो , उम्र मेरे साथ गुज़ारनी है सिगरेट के साथ नहीं ,,,, तुमने मेरा माथा  चूमा  , मेरे कान में आकर कहाँ  "ये वादा उम्र भर का है सिगरेट की तरह  जालकर खत्म नहीं होगा। . 

वो लम्हा , सर्दी से कांपता हुआ ,बर्फ पर ठहर गया था पिघला नहीं है आज तक , … तुम्हारा हाथ  सूरज से तपिश दे रहा था और एहसास उस गर्मी का जो मेरे जीने के लिए जरूरी था 
कुछ चीज़े कुछ बाते कभी नहीं भूलते ,,,,हर मोड़ पर वो साथ साथ चलती है।
 
आज फिर वहीं सर्द रात है और सिगरेट के बनते  बिगड़ते छल्ले आसमान को गर्म करने  की तलब से  भाग रहे है। 



यूँही बहता मन

धागे को  बुनने वाले न जाने कितने
ताने बाने , सब उलझे एक दूसरे से
 किस ख्याल को धागे से बाँध
गाँठ लग दूँ , ख्याल भी उलझे उलझे
ताने बाने से और मजबूत धागे
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कुछ किस्से यूँ बयान नहीं होते
जहन  को टटोलना होता है
रात भर वो लोहे का संदूक
छान  मारा तुम्हारी  एक  पुरानी
तस्वीर के लिए..... 
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लाइलाज गम रहा तुम्हारा जाना
हज़ारो चोट खाई मैंने ,
इस एक गम को  छुपाने के लिए 
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आज भी कोई सन्देश उस अमरुद
के पेड़ की शाख पर अटका है
जिस शाख पर बैठ, तुम मुझे
चिड़ाते थे... 
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किस्से  कहानी  जहां रोज़  बहा
करते थे आज वहां सिर्फ पानी हैं
कितनी कहानी कितने नींद  में
ऊंघते  वाले हम्म , पानी में
बह  गए..... 
कल शहर की नदी से सीप मिला
मुझे। . 
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ग़ाँव उजड़ गया तूफ़ान में
साँसे उधार ले  राखी है उसने ,
 उस सूदखोर  से 
कब आओगे तुम , क़र्ज़ चुकाने 

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आहा तुम्हारी बातेँ  एक ठंडी बयार
मन को बाहा ले जाए.....
गर्मी में लूँ क्यों बहती है


यूँही 

Friday, November 21, 2014

रास्ते

पहाड़ काट कर
रास्ते बनाए ,
रास्ते को पगडंडी
तक तुम छोड़ आए
भटके मुसाफिर, भूले
सभी उस राह से जाते
है कुछ दर्द को बिछाते हुए
कुछ, रास्ते के किनारे में
पड़ी खाई में समुंदर को
छोड़ते हुए  ,कदमो के निशान
है नहीं ,जो बोल सके कौन
आया ,कौन गया

तुम भी गये थे क्या
उन रस्तो पर ढूँढने,
कुछ बीता वक़्त
कुछ खोया सामान

क्या बात है की अभी तक
तुम आए नहीं??
याद है
वो राह जहाँ मुड़ती है
वही तुम्हारा घर है

Sunday, November 9, 2014

चाँद

पैर मिट्टी से सने
हुए , टुकड़े टुकड़े
जैसे चाँद के कई
उसके पैरो पर चढ
बैठे, भर भर पानी 
उडेल, एक पैर से दूसरे
पैर को रगड़ा ,दूसरे से
पहले को, मलाल बह ही
गया उस तेज भाव में
बारीशो में चाँद बहता
क्यो नहीं , आसमान से

Saturday, November 1, 2014

रात की औरत



महकते,मुस्कराते चेहरे
काजल ,श्रृंगार  वाली
खुद को चाँद के हवाले कर
सूरज बुला लेती है

रोज़ रात सड़को पर गंगा बहती है
फिर भी शहर बिखरे और उजड़े  है
क्यो ??