Friday, November 21, 2014

रास्ते

पहाड़ काट कर
रास्ते बनाए ,
रास्ते को पगडंडी
तक तुम छोड़ आए
भटके मुसाफिर, भूले
सभी उस राह से जाते
है कुछ दर्द को बिछाते हुए
कुछ, रास्ते के किनारे में
पड़ी खाई में समुंदर को
छोड़ते हुए  ,कदमो के निशान
है नहीं ,जो बोल सके कौन
आया ,कौन गया

तुम भी गये थे क्या
उन रस्तो पर ढूँढने,
कुछ बीता वक़्त
कुछ खोया सामान

क्या बात है की अभी तक
तुम आए नहीं??
याद है
वो राह जहाँ मुड़ती है
वही तुम्हारा घर है

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