Monday, December 15, 2014

मेरा प्रेम

रेगिस्तान के बीचो बीच 
एक  टूटा  फूटा सा ,रेत  में 
गड़ा  एक मटका, जिसका
सर नहीं , पर दिल खुला है
उसमे चंद  कांसे के,चाँद से,
न चलने वाले कभी, मायूस
सिक्के पड़े है ,तुम्हारे प्रेम के

वो बीज बनकर  बिखर गए
उस रात, जब समुन्दर  करीब
आया , फिर गुलाब  बन खिल गए 

गोया  जादूगर है प्रेम  

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कुछ सिक्को के बदले
वो यूँ दुआ बुदबुदाता है
जैसे उसका बड़ा याराना
हो खुदा  से

इश्क़ में   एक तू ही अपना
बाकी सारी  दुनिया  झूठी
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 वो उम्रभर का  साथ मांगता है
मैँ उस उम्र में उम्र भर का प्यार

अपनी अपनी रिवायतें  है
निभाना जरूरी है  

Sunday, December 7, 2014

मेरा शहर

मिट्टी  का बना कोई  घर नहीं  दिखता
नहीं दिखाता यहाँ अब कोई मिटटी का
सौंधी महक  नहीं महकती  मिटटी की
किसी के बदन से, शायद कोई लिपटा
ही नहीं है  बरसो से अपनी माँ  से
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मेरी बेटी चित्र में  एक
मिटटी का घर , दो
गाय , गोबर और
उसके आस -पास
खेत बनाती  है
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बड़ी इमारत में
लोग घूम रहे है यहाँ
वहाँ , सब के चहरे
और हाथ रंगे हुए है
रंग रोगन कराया है
घर में सभी ने,
हाथो से रंग धोते
नहीं और चहरे पर
हर बार नया रंग
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अब चित्र से धीरे धीरे
खेत ,गाय  और घर
गायब हो गया ,और
बन गई  एब्सट्रेक्ट पेंटिंग





Monday, December 1, 2014

यूँ ही उलझी उलझी

तुम इतनी  न पिया करो 
बहक जाते हो
न जाने फिर कितनी
सच की उल्टियाँ  करते  हो। । 
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पिता को चाहिए सपूत
दादी को पोता
घर की रखवाली
का जिम्मा
पराये घर की लड़की
के हाथ  ।।

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तोंद बहुत बड़ी है
सोचता हूँ कुछ गरीबो में 
बाँट दूँ , पुण्य और नाम
दोनों एक साथ
गरीबो की तोंद क्यों
नहीं होती। । 

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