Tuesday, November 3, 2015

दिल की ज़मीन

कुछ किस्से कहानियाँ दिल
के अंदर ही पनपा करती है
और वही सुखकर झड़कर
राख बन जाते है
दिल की ज़मीन को भी खाद चाहिए...

Monday, November 2, 2015

शब्दो का जायका

कुछ पक्के रंग ,शब्दो के, जायका बन
जुबान पर बरसो तक ,ठहरे रहते हैंं
रंगरेज से कहो ,जुबान चाशनी से धोये

Thursday, October 15, 2015

बुद्ध

प्यार ,किफायत वक्त की जरूरत हैं
मसरूफियत बुद्ध गढती हैं
बुद्ध को प्यार हुआ़...कहानी थी, पगली

Tuesday, September 29, 2015

रिशते

हथेलीयो पर आसानी से
रिशते कहॉ उगते हैं
कुछ टूटते लम्हो पर कैकटस
बनते है अौर कुछ कैक्टस बन
गुजरते लम्हो से टूटते हैं
हर जलजले मे रिशता मगर
मिठा ही है शहद सा
†****†*******†******
रिशते जो आर पार है वो भी
बेहतर नहीं,निगाहो पर हैरानी
और खुदा पर शक की बात
होती है तब
आखिर खिडकीयो पर पर्दा
जरूरी हैं खुले सामान की
कोई कीमत नहीं

प्रेम

तुम मुझे मिलना धरती के उस छोर पर
जहॉ सागर चूम रहा होगा,धरती को
मिठे बोल से सागर को मिठा करेंगे
और चले जाएँगे ,प्रेम के उस पार


Thursday, September 17, 2015

नन्ही कविता

1) कुछ कच्चे पक्के से गुथे मन
   की कविता रच दी
   कुछ ने प्रेम की बात
    काग़ज़ पर पथरा दी
   कुछ ने प्रेम में भागी
   लड़की रच दी

   कोई उस किसान को क्यो.
   नहीं लिखता
   जो इस बार बारिश न होने
   पर अपनी प्रेमिका से नहीं मिल
   पाया ,वादा था कटाई के
    बाद मिलने का
    पड़े सूखे ने वादा सूखा
    दिया ,जैसे रेत में
   कोई अरमान प्यास
   से तरस कर दम
   तोड़ देता है
   किसान का प्रेम
  सूखा बादल जो आया तो
  था पर पन्नो पर
   कविता नहीं बन पाया

लंबे रास्ते पर खडे पेड
 खामोश है  मगर
 रस्सी गर्दन में
  लगाए झूलते है किसान के लिए

2)
वो  माँ कविता क्यो नहीं
होती जो २ रुपये गाँठ में लिए
बीमार बच्चे  को गोद मे लिए सोचती है
भगवान आज भी सवा रुपये में
चमत्कार करता है .. डॉक्टर
महंगेहै इस ज़माने के
3)
कविता वो दर्द क्यो नहीं
जो प्रेम के बिना उपजे है
जो पेट में मरोड़ की तरह
पड़ते है
साहब खाना देंगे, ४ दिन से नहीं खाया

4)
मैं कविता ही लिख रही हूँ
प्रेम नहीं.. पर है कविता
 सच है ये.. बस मेरा प्रेमी नहीं
इसमे और मैं भी नहीं,पेट के
 मरोड़ , खारे पानी वाली सच
  की कविता

Monday, August 31, 2015

प्रेम

जब मुट्ठी भर साँसे और कुछ टूटते लम्हो की
जिंदगी बची थी जिस्म अपने छिलके उतार
रहा था वो ज़मीन जिस पर लिपटकर सोता
था उस से प्रेम माँग रहा था
तुम मुझसे उस जगह मिलना ,जहाँ वो नदी
का पार है वहाँ मुझे पेड़ की तरह गाड़ दिया
जाएगा , और तुम मुझसे प्रेम लेकर जाना
और बाँट देना उन सब मे. जो प्रेम में
डूब कर मर गए थे कहना ,मैं प्रेम
वृक्ष हूँ
जब प्रेम की हुई कई क्रांतियाँ ख़त्म हो
जाएगी और तुम्हारी उंगली के बीच
बची जगह पर प्रेम उगने लगेगा
तब तुम, प्रेम की नई क्रांति करोगे
और बर्फ पर जाने वाले लोगो को
वो लकड़ी दोगे जो उन्हे उस मिट्टी के पहाड़ पर
चढने में मदद करेगी, और उनके
जगह जगह पर पड़े बूट के निशान में
प्रेम उगने लगेगा ,बर्फ पर पुहँचने
से पहले ,

Sunday, August 23, 2015

क्षणिकाएँ

खामोशी जलाती है.
कुछ नहीं मिल रहा है
न दर्द न प्रेम
अब कविता कैसे लिखूं
*********************************
शोर बहुत है आसपास
बस तू ज़रा बोल दे.
खामोशी का शोर दिल तक
जाता है
******************************
लोग जाने क्या मुट्ठी में
दबाए घूमते है??
समुंदर,एक हथेली भर खारा पानी
*******************************
लो फिर आ गया दर पर
जितना जीना का सोचता है
उतनी ही प्यास बडती है.
ज़िंदगी बुझ रही है, प्यास में
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हज़ार इलाज़ लिए ज़िंदगी
जीने के , हज़ार वैद से
मिले ,पर किसी ने बुद्ध
बनने की दवा न दी
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सुना है बड़े संजीदा है लोग
अपनी अपनी मुहब्बत लेकर
दिल फिर भी कई
कहानियो से गुलज़ार है
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जब कुछ न हो कहने को तो
अपना ही किस्सा कह देते हैं
दुनियाँ का एक साज़ो सामान
आख़िर मैं भी तो हूँ
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चलो अब दर्द की गुहार ज़्यादा
न करो कुछ और लिखते है
आओ प्रेम प्रीत की बात करे
फिर बुद्ध हो जाए

Sunday, July 19, 2015

चमकीला प्रेम

सूरज जला कर खाक करता हैं दिन 
वक्त अपनी ही साजिशो में उलझा ,
चॉद ठहरा हैं ,बुझी रात की राख के ढेर पर...
फिर भी


देखो दूसरे छोर पर सुलगता दिन बादलों में छिपा ,
और सफेद बादल पर लिख रहा हैं, चमकीला प्रेम

Wednesday, May 27, 2015

उपरवाले

हे  उपरवाले मन किया की आज तुझसे  थोड़ी बात की जाए ,इसलिए अपने जरूरी काम छोड़ गैरजरूरी काम करने बैठी हूँ  तुमसे बात करने ,पता नहीं कभी तू ये  चिट्ठी पढ़ेगा भी या नहीं पर तुझे लिखना  जरूरी है , सुन न , ये बता तूने बंदरो को इन्सान क्यों बनाया ?? तूने क्या सोचकर बनाया बता न ??

 मुझे लगता है तू भी कोई बहुत बड़ा सॉफ्टवेयर डेवलपर रहा होगा ,जिसे हर वक़्त अपने सॉफ्टवेयर कोई नया updation  चाहिये ।  बस यही सोच तूने बंदरो को इंसान बना दिया होगा  ।

पता है तुमने इंसान तो बना दिया पर अकल का  मामला  गड़बड़ कर दिया  , जब बन्दर था तब तक बड़ा मज़ा था  प्यार था बंदरो के बीच , बस एक यही बड़ी बात थी उन में , पर जैसे ही  इंसान बना उसे बाकी सब चीजो  में बुद्धि तेज  हो  गयी पर  सवेंदनाओ में कम  अकल  कर दिया ।

तेरा सॉफ्टवेयर ढंग से अपडेट नहीं हुआ , तूने बाद में और बड़ी करामात कर दी ,उन्हें हिन्दू मुस्लिम बनाकर , तूने ही बनाया न , वार्ना इन बंदरो को कैसे पता हिन्दू कौन , मुस्लिम कौन , अरे भाया तेरी पूजा करे है न ,तो तूने ही सिखाया होगा ये हिन्दू है ये मुस्लिम। . 

 बस अब एक अरज थी सुन न , सुन रहे हो  न , तेरी हवा का जो  सॉफ्टवेयर  है  वो हिन्दू मुस्लमान  सबके पास एक सा जाता है जरा चेंज कर न, अब तो स्टीव  जॉब भी तुम्हारे साथ है स्टीव जॉब से पहले वाले सारे कम्प्यूटर्स के मास्टर वही है उन सबको  पता है जब डेटा की डेलवेरी करनी होती है तब उसे छोटे छोटे पैकेट्स में बांटकर  उस पर डेस्टिनेशन का  address  चिपका देते है और आखरी में जहाँ डिलीवरी होनी होती है  उन सारे पैकेट्स को assembel  कर उस address वाले कंप्यूटर पर वो डेटा डिलीवर करते  है ,कुछ सीख ले उनसे । 

ऐसा  ही कुछ तू अपनी बहती हवा के साथ कर , बहती हवा पर एड्रेस मुस्लमान लिख जिस से वो हवा सिर्फ मुस्लमान  को मिले और दूसरी हवा के पैकेट पर हिन्दू लिख वो  सिर्फ हिन्दू को आये ।  देख  बराबर का न्याय करना । और हाँ पानी में भी ऐसा ही करना । अरे हाँ जब कोई अपदा आये उस पर भी हिन्दू ,मुस्लिम लिखकर भेजना , please गॉड जी  । 

हिन्दू और मुस्लमान  में तू मत भेद करना , अब तूने बनाये है ऐसा सबकुछ , अरे  सब लोग कहते है हिन्दू मुसलमान तूने बनाये है  अब देख मुकर  मत जाना , तू तो राम और रहीम , गीता और कुरान तक ही सिमट कर रहा है , उन किताबो में छिप कर बैठा  है और बहुत बड़ा डरपोक है खुद की रक्षा भी नहीं कर पता , इंसानो  को अपने वजूद को बचाने के लिए भेज दिया ।

जिसने गीता लिखी और जिसने कुरान बस उन दो की ही पता था मतलब उसका , वार्ना तुझे भी  पता है हिन्दू का भगवान   और मुसलमान का अल्लाह ,  अब  बता चिट्टी किसे भेजूं , मेरा दिल रोता है तुझे देखने के लिए 
तू हिन्दू सा दिखता है या मुस्लमान सा , या क्रिस्टन  सा , बता न तू  क्या है ??

मेरी एक  अर्ज़ है तू वापस बन्दर नहीं बना बना सकता  हम इंसानो को क्या। .... वो जंगली बन्दर जो एक दूसरे की पीठ खुजाते है और  जरा सी भी तेरे होने की समझ  न हो, जिन्हे । . कौन है तू 

                ढूंढो , मैं भी ढूँढ रही हूँ बन्दर होने की दवा 

यूँ ही कुछ कुछ मन 

Tuesday, May 12, 2015

मां

किसी काफिर ने कहा ,नासि्तक हूं मैं
खुदा मेरे बगल मे आ बैठा , मां
जब तेरे पैरो को छुआ मैनें

मेरे शोना

एक पुर्जा तुमने भेजा था
रोशनी का टुकडा डालकर
चॉद की चॉदनी भरकर 
फूलो की महक से महकाकर
उस पर लिखा था तुमने,
मैं मुस्करा कर पढ रही
हूं ...मेरे शोना

Saturday, May 2, 2015

मजदूर

जिस दिन और भी कई लुटेरे  आकर
इस धरती को लूट रहे होंगे
और धरती किसी खूबसूरत लड़की
की तरह अर्ध नग्न अवस्था में
अपनी अस्मत बचाने की नाकाम
कोशिश में होगी , तब
सारे मंदिर और मस्जिद
सब  ढह  चुके होंगे और
धराशायी होंगे   धर्म  के
ये थानेदार , तब पेट की
सुलगती  आग का  कोई
हल उस भगवान से लेकर
उसके ठेकेदार के पास  भी नहीं
होगा , और तब, जब जिस्म की
जलती आग के लिए किसी
मॉस की तलाश से पहले
अपना  मुंह, अपनी
ही आंतो में डालकर
उसकी आग बुझानी  होगी

तभी खारे पानी की बून्द
अजब  सी महक वाली
जहाँ  जहाँ  गिरेगी  वो
 रोटी बन ठहर जायेगी

माँ ,आज रोटी में नमक ज्यादा है
कौन मजदूर उन  खेतो से होकर गुज़रा

Thursday, April 30, 2015

कविता शब्दों की

जब  हज़ार  कविता  लिखने
के बाद , इस दुनिया की
पर्दा दारी खत्म हो गयी होगी
और सच आर पार होगा तब
मेरे दोनों हाथ काट दिए जाएंगे
तभी शब्द मेरे अंतर्मन में
कही चीख रहे होंगे , सिसक
रहे होंगे , ये सब करके, वो थककर
आत्महत्या करेंगे तब तुम मेरे
शब्दों  को सहारा देना
मरने से पहले तुम उन्हें
किसी जिल्द में बंद करके  की
उन्हें आवाज़ देना , मुझे
यकीन है तभी अँधेरा कई
कोनो में छुपा हुआ  होगा ,
तब तुम ये जादुई   शब्द की
चमक दिखाकर उन कोनो
को अँधेरे की जंग से आज़ाद
कराना

करोगे  न...  बोलो
आखिर ,आखरी प्रेम होगा  वो इस संसार में

Wednesday, April 29, 2015

झर झर कर गिरा वक़्त

वक़्त झर झर कर कही गिरा था
पत्तो  से बांध शाखों पर टांग
आई थी , तुम याद आते रहो
बीते वक़्त में ,हर पत्ते पर
चमकती सुनहरी शिहाई
छिड़की  थी

यादो का कोई रंग नहीं
हाथ में मेहँदी के रंग
खिले थे  उड़ते  उड़ते
पंछी मुंदरे पर जा बैठा
उसने ही शायद अभी
पीहू की आवाज़ लगायी थी

अधःखुली खिड़कियों
से झांकती धूप, ठहरी
रही , मैंने तभी पैरो
में मेहंदी लगायी थी
नम रही मेहँदी और
तेरी याद आई थी

अब तो मन की जोगी
न दीन  ,. न दुनिया की
मुझे खाली कमरो में
अपनी ही हसी सुनाई
दी थी

डूब  गया है जो सितारा दूर
उसके बिखरने की
आवाज़ आई थी
बिखरे है ख़्वाब सारे ,
कांच के टुकड़े  ने पैरो में
जगह बनाई थी  (  ये  आखरी  पंक्तियाँ  नेपाल वासियो के लिए )






Saturday, April 18, 2015

जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है

जब मन उलझा हो और अंदर बहुत तूफ़ान उठा हो तब एक यही जगह है मेरी जहाँ सब निकल देना आसान होता हैं शायद  किसी से उम्मीद भी नहीं की  जा सकती की कोई मुझे समझे  और क्यों समझे ?? किसी ने ठेका थोड़ी न लिया है मुझे  सुनने  का , मुझे समझने का  है न दोस्त !!

 सुनो न , कभी कभी लोग यूही बिना बातें समझे ,बिना बात की तह में गए कई बातों को गाँठ बाँध लेते है जल्दबाजी उनकी आदत है शायद ,क्यों इतनी जल्दी में फैसला ले लेते है बिना  सही गलत  को समझे  ,क्यों इतना ईगो , अपने बदन में गाँठ बांधकर  रखते है की खुद को सिवा  किसी को सही मानते ही नहीं।

पता है दोस्त , ये बात उस दिन की है जब में कॉलेज में आगे की सीट पर अपनी एक दोस्त के साथ जिसे मैं  बहुत अच्छा दोस्त   मानती थी उसके साथ बैठी थी , उसको काफी बार नोटिस किया था  हर बात पर compare करते , बिना मतलब का कम्पटीशन में उलझते , पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि दोस्त थी वो , कोई ऐसा करता है तो नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है बच्चा समझ कर ,क्या फर्क पड़ता है यही सोचकर जवाब भी नहीं देती ,  पर उस दिन तो उसने झगड़ा हो कर लिया इस बात पर लेकर की मैंने ये कह दिया की तुम्हारे लिए आसान है काम करना क्योंकि तुम्हारा एक ही बच्चा है और मेरे दो , और logically  ये बात सच है , एक से सारे काम आधे और दो से सारे काम डबल , उनके खाने से लेकर उनको पढ़ाने  तक का काम , अगर जरा सा भी लॉजिक हो तो आप आसानी से समझ जाएंगे की लोग दो बच्चे  आज के वक़्त में क्यों नहीं करते क्योंकि उतना ही टाइम दूसरे को   भी देना होता  जितना पहले को ,हाँ  मैं एक बच्चे को लेकर कई काम आसानी से कर पायी हो , चलो खेर,.. . दोस्त  पता  है  उन्हें ये बात, मैं  समझ ही नहीं आई  और मेरा प्रॉब्लम ये रहा है की मैं  झगड़ा देख ही पैनिक हो जाती हूँ  इसलिए  कोई जवाब देना मुश्किल होता है मैं सिर्फ इतना ही बोल पायी की जब तुम्हारे होंगे तब समझोगे , उस पर भी  अजीब  से जवाब था , और  दोस्त पता है वो दो लोग मुझसे झगड़ा कर रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे प्लान करके आये हो ,खेर  हद तब हुई जब उसने मेरी माँ से अपनी माँ का compare कर डाला और कह दिया मेरी बहुत अच्छी है , जानते हो क्यों ??? क्योंकि उसकी  माँ  सारा काम करके देगी और मेरी माँ इसलिए बुरी क्योंकि मैं अपनी माँ से काम नहीं लेती   ,माँ  बाप से काम न लेना क्या माँ बाप को ख़राब बना देता है ??

दोस्त पता है उन दोनों में से एक एक ने  तो मुंह बना लिया है पता नहीं क्यों , पर क्या किया जा सकता , जहाँ सिर्फ समझदारी का झंडा होता है उन्हें कुछ समझाया भी नहीं जा सकता। . वो अपनी समझ से मजबूर है होना
भी  चाहिए , क्योंकि हम अपनी सोच के सहारे आस पास की  दुनियाँ बनाते है जितनी  बड़ी सोच होगी  उतना कुछ नया ही सीखने को मिलेगा , ये  एक छोटी से बात जिसे सिर्फ मैंने अपनी तकलीफ बयां करने के लिए कहा था न की छोटा बड़ा  जताने के लिए, जिसे  ईगो पॉइंट बनाकर ईगो की गाँठ में बांधकर रखा है

समझ वैसे होती भी  बहुत छोटी है जानते हो दोस्त इतनी आसानी से की गयी बात आपका ईगो  जाग जाता है कितना मुश्किल होगा जीना फिर ???
हार बात पर ये उम्मीद करना की सामने  वाला मुझे समझे और में समझदार हूँ मेरे मुताबिक बात करे तो  फिर वो दोस्त कैसे ??
माँ का compare  करना तो बच्चो से भी ज्यादा छोटी हरक़त लगती  है खैर , मैं तो सब सीख रही हूँ। .आओ
सबका  स्वागत  है मैं  सीखने को तैयार हो ।

 ईगो हम इंसानो से ज्यादा बड़ा है। . ये सीख लिया मैंने ..

छोटी समझ में जीना उतना आसान नहीं दुआ करती हूँ सारे लोग मन से भी स्वास्थ हो।

समझ का क्या कभी भी आ जाएगी ,आप सुनिए  मेरी प्रिय आबिदा परवीन जी को , कहाँ ये छोटी  छोटी बेकार की बातों में वक़्त जाया कर रहे है

https://www.youtube.com/watch?v=C7UrtinSwzc



Tuesday, April 14, 2015

यूँ ही दिल की आवाज़

मैं बिक  ही जाता हूँ अल्फाज़ो  से
पूरी दुनियाँ में ,पर जौहरी कौन
जो हीरे की पहचान करे  ??

********************

सभी रखते है जेब में आइना
बात तो तब है जब सूरत न
देख ,सीरत देखा करे

*****************************

आते है सभी मुझे मुहब्बत का सबक
सिखाने , शागिर्द बन जाऊं , जो चुपचाप
 से  कोई मुहब्बत करे
***************

जो जुबान खोलूं तो बुरा
जो जुबान  बंद  रखूं तो बुरा
अब  तुम्हीं बताओ किस
 ताले में रखूं जुबान
*************

दिल  जो रखा हाथों में
तो गेंद से उछालते रहे
वापस मांगी  जो शय अपनी
तो वो जुदा से रहने लगे

*************************
सभी के लबो पर शिकवा सा
ठहरा है , मुहब्बत तेरे होने की
इतनी पैरवी कोई  क्यों करे ??  

Friday, April 10, 2015

प्यार,दोस्त

सुबह का वक़्त और हज़ार बातों से मन घिरा हुआ , उलझा सा ,बेटी के लिए लंच तैयार करते करते न जाने कितने ख्याल भी साथ पकते रहे । इतना छोटा सा दिमाग और क्या क्या सोच लेता है कुछ दोस्तों के लिए तो कुछ अपने लिए , दोस्त, कुछ दोस्त बिछड़ जाते है और कुछ नए जुड़ जाते है जुड़ने की ख़ुशी तो कुछ के बिछड़ने का दुःख, दुःख जो ख़ुशी से ज्यादा होता है ऊपर से ये भी नहीं पता हो की लोग आखिर रूठ क्यों जाते है चले क्यों जाते है ??

मैं भी कैसे पगली इस सोशल मीडिया के दोस्तों की बातें कर रही हूँ जो हक़ीक़त में तो कही होते ही नहीं , उन्हें दोस्त मान बैठते है जाने और आने से प्रभावित होते रहते है प्यार बड़ी अजीब शय है किसी से भी हो जाता है। . यार ,प्यार की बात कर रही हूँ इश्क़ की नहीं , मुझे आस पास के हर इंसान से बहुत प्यार हो जाता है मेरी हेल्पर जो है मुझे उस से भी बड़ी मुहब्बत है लेकिन ये बात कोई नहीं समझ सकता। कहाँ में इस प्रैक्टिकल की दुनिया में बिना नफा नुकसान सोचे काम कर रही हूँ वो भी प्यार का । प्यार को एक ही तरह से क्यों परिभाषित किया हुआ है ? ये मेरी समझ के परे है खैर, सब अपनी अपनी सोच से चल रहे है मैं ज्यादा देर तक पीड़ा में नहीं रहने वाली।नही तो मेरी हंसी दुनिया में तन्हा रह जायेगी और मुझसे ज्यादा अवसाद में रहा भी नहीं जाता ॥ ये एक जरिया है जहाँ मैं अपनी बात कहकर हल्की हो जाती हूँ मगर दुःख मनाने की कोई वजह नहीं की मैं दिन रात पीड़ा में रहूँ। शुभ दिन आपका और मेरा भी

Monday, April 6, 2015

गीला मन

सूखे फुलो के पास
गीला मन रख छोड़ा
उलझा  गीला मन
डाल पर जा बैठा
सुखकर फिर सूखे
पत्तो सा नीचे
गिर हवा में उड़ने लगा

सूखा मन हवा को कर
रहा है गीला गीला सा

Saturday, April 4, 2015

बुद्ध

जब लोग ज़मीन की खुदाई कर
रहे थ और खेतो में हल चलाकर
बीज बो रहे थे, तभी, ठीक तभी
मैं खुद के जन्म होने का इंतज़ार
कर रही थी
मैं भ्रूण हो गयी थी
मैं एक भ्रूण की तरह
एक अंडे में चली गयी
जिससे सभी मेरे अंगो का
मेरे दिमाग़ का वापस जन्‍म
हो , जन्म हो मेरी नयी सोच का
जन्म हो मेरी नयी दृष्टि का
जन्‍म हो नये मन का
मैं उसी तरह जैसे
बुद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे
बैठकर बुद्ध बने
मैं  भी उसी तरह का
गर्भ में रहकर  अपने बुद्ध होने के
जन्‍म में लगी थी

आस पास सभी ईश्वर थे
वो भी जो मेरे पास आकर
कटोरी नीचे रख हाथ फैलाकर
भीख माँग रहा था
और वो औरत भी जो अपनी
ग़रीबी का सौदा अपने ही जिस्म
से कर रही थी
वो भी ईश्वर ही था
जो लोगो की हत्या कर
पैसे बना रहा था
और वो नेता भी जो सिर्फ़
अपना घर के लिए हम सबका
घर लूट रहा था

ईश्वर वो भी था जिसने
निर्भया को भय दिया
ईश्वर तुम भी हो
पर इंसान कोई भी नहीं
और मैं, मैं तो बुद्ध होकर
नया जन्म लेना चाहती हूँ
जिससे मैं खुद को सही
प्रमाणित कर सकूँ

तुम जब आओ मेरे पास
तो आँखें बंद करके ,
प्रसन्न हो सको
की तुम सुखी हो
और सुख का सिर्फ़ यही मार्ग है

आओ न सब गर्भ में जाए
और नया जन्म ले बंद आँखो
के साथ

Friday, March 27, 2015

आडी - टेडी लिकरो की तस्वीर

निजी सामान को खुला नहीं छोडते
निजी मन की बात यू ही नहीं करते
बोल री कवीता,अब कहॉ गफ्तगूु की जाये

****************************************************

टूटे हैं रिशतोे के धागे
कहॉ चला अब तू,सुई -धागा लेके
दर्जी क्या ,अब कुछ नहीं सिता ?


 

कुछ अलग अलग रंग

फलसफहा सच का,किताबो में 
खूबसूरती से रहते है..
कहाँ है, ये ज़माने में ...
सड़को के किनारे पर बिकते फूल, प्लास्टिक है
सच थोड़ी ना है रे बुद्धू
************************
रोज़ आ जाती है मचलती लहेरे
भिगो जाती है गाँव मेरा
बेचैन सब इधर उधर भागते है
कोई बाँध बनता क्यों नहीं
ओ जान, अब तुम कहाँ हो
तेरी यादों की लहरो में डूबा हूँ
*****************************

तुम कब तक ठहरे रहोगे यहाँ ,
कोई चाहे आना तो
तो भी नहीं आ सकता ,
ये वन-वे है ज़िंदगी का, मेरी जान
आओ अब प्रेम करे

तुम्हारे होने से ज़िन्दगी कई  रंगो से भरी है  और ये  सब तुम्हारा है। . … हाँ सब तुम्हारा है। हाँ मैं भी।... अब खुश  

Friday, March 20, 2015

रिश्ता

हज़ार बातें ऐसे होती है जो लिखी नहीं जा सकती , उसके लिए कोई नए शब्द , नयी ध्वनि ढूंढना भी चाहो , तो नहीं मिलती ,ऐसे चीज़ो को एहसास कहते है शायद , पर एहसास की शीशी ही मुझे यहाँ  उडेलनी है ।
कभी कभी मुझे लगता है की अंदर से हम कितने खोखले होते हैं ,प्यार जैसी कोई शे तो होती ही नहीं ,हम उलझे से हर वक़्त ,जो न जाने किसी चीज़ की तलाश में लगे है ।
हम कभी खुद को हर वक़्त बहलाते  रहते हैं  सिर्फ  सुख के लिए , तो क्या सच में हम अपने दुःख -सुख के लिए सिर्फ हम खुद ही जिम्मेदार होते है क्या सिर्फ हम खुद ?

देखे है कई रिश्ते  जो कभी रिसते नहीं ,बस भरे से रहते है प्यार देने के लिए , प्यार भरने के लिए और कुछ कभी भरते ही नहीं ,न जाने कौन सा सुराग होता है उनमे ,जो रिसते ही रहते हैं  दोनों हाथो से सम्भालो तो भी ।
  कुछ रिश्ते  उम्र भर के लिए होते है जिन्हे खाद पानी की जरूरत है पर फिर भी है खुद में सम्पूर्ण।  कुछ लोग ओवरप्रोक्टेटिवे हो जाते है उस एक पर्टिकुलर रिश्ते को लेकर ,बाकी रिश्ते को देख  नहीं  पाते ।

क्या सही क्या गलत कौन जाने।  रिश्तो की डोर है खींचा नहीं जा सकता । 


Tuesday, March 10, 2015

सपना

एक देश था  उसका  कोई राजा और रानी नहीं था  पर उसकी अवाम थी  जो अपने मन का खा रही थी  पहन रही  थी  ओढ़  रही थी लड़कियाँ लड़को सी आज़ाद थी कही भी किसी भी वक़्त आने जाने के लिए । तब  भी, जब सूरज अपनी छाती पर आग से पड़े फफोलो  पर  चाँद की चांदनी का महरम लगाकर किसी कोने में सो रहा होता था । लड़कियाँ  बेधड़क  घूमती थी

कोई माँ अपना गर्भ दिखाने  नहीं जाती थी उन दिनों में, उस राज्य  में । लड़कियाँ के आने की भी धूम होती थी पृथ्वी की उन्नति की दुआ ठहरी रहती थी

काश ....

उठ री  आज का दिन दिया है डॉ ने तुम्हारे एबॉर्शन का। य़े लड़की नहीं चाहिए , मुझे बेटा चाहिए  वंश के लिए.....
किसी गांव का घर, जिस की छत पर आग से जलता सूरज खड़ा तमाशा देख रहा था सोच रहा था अभी चाँद क्यों नहीं आया चांदनी लेकर ,जबकि लड़की को मिटाने वाले आ  गए ।

सूरज के डूबने  का वक़्त लड़की के मिटने से तय होता है अब।




Monday, March 9, 2015

महिला दिवस

महिला दिवस  बहुत जोर शोर से मनाया गया  । बिना ये बात समझे की आखिर ये है क्या  ?? कुछ को दुःख था की ये स्पेसिफिक  महिला दिवस देकर हमारे साथ नाइंसाफी की गयी ,क्या बाकी के दिन  पुरषो के है ।जाहिर सी बात है पुरष -प्रधान समाज में  एक ही दिन महिला का क्यों ??

खैर अपनी अपनी समझ से सभी औरते से मनाती  रही ,इसे अपनी आज़ादी का दिन समझ कर ।

बहराल ,ये दिन औरतो को समानता मिलने की ख़ुशी में  निर्धारित किया गया , ये बात अलग है  की समानता के लिए  आज  भी  औरते अपनी युद्ध पर जुटी हुई है १९०८ में  us ने औरतो को वोटिंग करने  का  अधिकार दिया गया जो अंतरराष्ट्रीय  महिला दिवस के रूप में स्थापित कर दिया गया । इसे मानाने की जरूरत है पर एक सोच के साथ एक समझ के साथ , खुद को ये याद दिलाते रहना चाहिए की चलना अभी बहुत है थकने से पहले , टूटने से पहले  और बिखरने से पहले ,आसमान और ज़मीन पर  पुरष और स्त्री का भेद हटाकर ।

ये सबको पता है अच्छा और बुरा दोनों ही लिंग में है  मगर फिर भी  कदम से कदम मिलें तभी कंधो से कंधो से मिलेंगे ।

वैसे मेरे मन था आज India's  daughter के  बारे में लिखने का, क्योंकि वो भी एक औरत थी और जो शहीद हुई है औरतो की लड़ाई के लिए जो  नींव  का पत्थर  बनी है उन्हें  मेरा  शत -शत प्रणाम ।

अजीब सी बात है दुनिया के सभी मुल्को में आये दिन रेप  , बच्चो के साथ अनैतिक  व्यवहार होता है औरतो के साथ  अन्याय होता है ,होता रहता है तब कोई चैनल उन बातो पर डाक्यूमेंट्री बनाकर दर्शको को क्यों नहीं दिखाते ?? लीजिये फिर गलत समझने लगे , मैं तो महज एक सवाल कर रही हूँ।

पूरी दुनिया के पुरुषों  की सोच  में औरत सिर्फ ऑब्जेक्ट ऑफ़ डिजायर ही है किस तरह उसे हासिल किया जाए।अजमाइश  के लिए चाहे  तो पूरी  दुनियाँ में एक साथ अँधेरा कर दीजिये फिर देखिये मुट्ठी भर पुरष ही मिलेंगे जो  उनके मन और उनके  सम्मान की फ़िक्र करते हो ।

 हमारे देश की धज्जियां  कोई भी उड़ने आ जाता है हम घर वाले  ही अपनी लाज नहीं बचाते । तो बाहरी लोग से क्या उम्मीद ??जब कोई सड़क  पर मर रहा हो ,बुरी हालत में हो तब हम अपना भला और भलाई सोच निकल जाते है और दूसरे दिन उस हादसे का दुःख मानाने के लिए कैंडल्स  लिए घूम रहे होते है

मेरा भारत  महान ,फिर india 's daughter  देख भारत को गालियाँ  दे रहे होते है । कौन है ये भारत  ?वो जिस पर डाक्यूमेंट्री  बनी  या वो  जो सड़क पर मुंह फेरकर  चलता है या  वो  कैंडल्स लेकर प्रोटेस्ट मार्च में  खडा हुआ  या वो जो पुरुषों  से जूझ रहा था बस के अंदर ??

पता नहीं औरतो के लिए कौन सी जगह है ??जहाँ वो लिपस्टिक लगाएगी , डिज़ाइनर कपडे पहन सके और ऐसे फुदक सके जैसे अपने घर के आँगन में हो ,पर दुःख तो यही है आँगन भी अब सुरक्षित नहीं। ....

महिला दिवस फिर आएगा एक नयी सोच और एक नयी लड़ाई लेकर। तब तक के लिए  महिला दिवस की ढेरो बधाई।

Wednesday, March 4, 2015

जीना है मुहब्बत से

जब अक्सर  खुद  के साथ  बैठती हूँ तो खुद को छुट्टे सिक्को की तरह  पाती हूँ । जो यहां  वहां छुट्टे से पड़े रहते है साथ करने पर बजते तो बहुत है पर बंधे हुए नोट की तरह एक साथ खर्च नहीं हो सकती । मुझे तो  खर्च होना भी  है तो  आहिस्ता आहिस्ता ,चिल्लर हूँ बज बज कर ही चलूंगी ,मन को महसूस कर कर के । खुद से मिलने के लिए मुझे बड़ी जुगत लगानी पड़ती है । कई बार ऐसे कोनो में छिपकर बैठना पड़ता है जहाँ से खुद को सुन सको , कह सको की "मुझे तुमसे प्यार है नीलम  "

क्यों प्यार के लिए  हम दूसरो से शिकायत करते  है । जबकि ये तो  पता  ही  नहीं की हमने आखरी बार खुद से मुहब्बत कब की, मुहब्बत देने की शे है पर खुद के ख़ज़ाने को भरना भी जरूरी है खुद को भरने के लिए खुद के साथ जीना कितना जरूरी है  वर्ना सांस लेना सिर्फ एक रिवायत हैं

मुझे जीना हैं प्रेम से भरकर , मन से भरकर । हर एक सांस ख़ुशी से , क्योंकि मुझे प्यार है खुद से


Monday, March 2, 2015

आज का मन

 सुबह से कई बार लिखने के लिए बैठी हूँ पर हर बार कुछ  न  कुछ काम देख उठ जा रही हूँ ।  कभी बाई, कभी घर की डस्टिंग के लिए तो कभी अपनी छोटी बेटी(Punthali) को लेने, फिर उसके साथ रहना उसकी  बेमतलब की ख़ुशी का हिस्सा बनाना और उसकी ढेर सारी बातें ,फिर  कुछ खिलाना और फिर Rakshandha  के आने के इंतज़ार के बीच ओर  हज़ार काम  आ जाते है

बच्चो के निकलते ही मुझे अशोक के ऑफिस जाने की तैयारी  करनी पड़ती है इन्ही भागते  दौड़ते वक़्त में से कभी कभी मैं मुठ्ठी में अपना वक़्त छुपाकर कोने में बैठ जाती हूँ  उस छोटे से वक़्त में कभी क्लास लेती हूँ तो कभी  घर से मिलती हूँ । कुछ दिन पहले तो कुछ static pages वाली साइट पर काम कर  रही थी अब वो खत्म है तो लगा अपनी लेखनी की जा सकती है मगर घर तो ऐसा  कुआँ  जो कभी भरता ही नहीं ,कितना भी कुछ करो ,कोई न कोई काम मुँह उठाये खड़ा रहता है । कभी बच्चो के शेल्फ देखो तो कभी घर के कोने ।

 अशोक का टाइम उत-पटांग  होने से  मैं  पूरी उथल पुथल  हो जाती हूँ । ये IT की दुनियाँ वाले बहुत नाचते है मैं भी इसी दुनियाँ से हूँ पर खुद को मैंने कंप्यूटर क्लासेज और बच्चो तक समेट लिया है

बच्चो के  Exams  आ गए है उन्हें पढ़ाना  हैं  फिर मिलती हूँ ॥


Sunday, March 1, 2015

अंतर्मन

सुबह सुबह अपनी रूह की निखारने का वादा खुद से किया है रोज़ उसे धोया करूँ ताकि हज़ारो की परत में मेल  जो चढ़ी है उसे  निकाल सको, निकाल सको अपनी बेचैन रूह को इन पन्नो पर । इतना आसान भी नहीं ये , क्योंकी मैं बहुत जल्दी वादा तोड़ देती हूँ । कारण कोई भी हो ,पर टिक  नहीं पाती। कभी घर के हज़ार काम बुलाते है तो कभी बच्चो के काम , कभी मेरे पेन्डिग पड़े काम चीख चीख कर आवाज़ देते है ,तो कभी वो किताबे जो मुझे पढनी है या फिर वो किताब जिन्हे पढने के लिए मैंने अपनी पढाई वापस शुरू की है । कभी कभी मेरे स्टूडेंट्स की क्लास चिल्ला -चिल्ला  कर आवाज़ देती है ।  कुछ भी तो नहीं छोड़ पायी हूँ । बस एक नौकरी बहार नहीं की,सब घर से शुरू कर दिया,बच्चो का मोह इतना बांधता है की अपने बारे में ज्यादा सोचा ही नहीं जाता  , सोचोगे तो हज़ार  गिल्ट  लेकर,मगर खुद को ज़िंदा रखने के लिए साँसों के अलावा भी बहुत कुछ जरूरी है।  ऐसी ही आकर दुनिया से चले जाना ,गवारा नहीं,इसलिए हर जगह  हाथ पैर चलाती  रहती हूँ।  मेरे भटकती आत्मा को थोड़ी शान्ति मिले उसे लगे की उसे नहीं नाकारा मैंने,उसका ध्यान रखा है कुछ  इंस्पायर होती हूँ कुछ अपनी रूह की सुनती हूँ

चलो देखते है कितने ईमानदारी रख पाती हूँ मैं 

Wednesday, February 25, 2015

प्रेम

कुछ कोरे पन्ने  भरना
कुछ खयालो को बेख्याली कहना
कुछ बेवजह की बातों पर
बेवक़्त  मुस्कराना, कुछ
धड़कनो को थामना
और कुछ पतंगों सा
हवा में उड़ना

प्रेम के अजब  हाल हैं
न कोई रंग होना
फिर भी  रंगो से  होना
न कोई गंध
मगर  महका हर
जगह

रंगो से भर जाओ अबके होली  में
 टेसू महक रहा है गली गली में





Monday, February 16, 2015

अछूत कन्या

अजीब सा मन होता है कभी कभी ,ठीक उस खूबसूरत सी औरत की तरह जो  बहुत चंचल है अपनी खूबसूरती    पर खुदी ही खुश होती है खुदी ही हज़ार खामियाँ  निकाल  कर दुखी,फिर कभी मन उस ऊँची कच्ची मुंडेर पर बैठ कर चहकता है जिस से गिर जाने का डर  बना रहता है उड़ान जो भरेगा  वो भी अपने कद से  ऊँची। आसमान के पार भी चला जाता है मन कभी कभी। कुछ उड़ान मैं भर कर आती हूँ चलेंगे मेरे साथ  ??

मन को माचिस के डिब्बिया से बहार निकल हवा में छोड़ दिया ,तब वो एक कहानी  पत्थरो, रेत ,समुंदर  सभी में से बिनता है वक़्त को थोड़ा मोड़ दो,वक़्त के कांटे का हाथ थामे चलते है पीछे की और जहाँ एक लड़की बैठी है भीड़ के बीच , सपनो को समेटे हुए ,कही गिरे नहीं,सपनों को बुनने वाली सिलियिों में लेकर,बुनकर ,सपनो को आँखों में टांक देती है

वो जिस जगह बैठी है उस जगह से सब बौने दिखाई देते  है मध्यम वर्गीय लड़की को  इतने बड़े जानेमाने कॉलेज में एड्मिशन मिलाना एक सपना ही था।

याद है उसे आज भी माँ अपने कपडे न खरीदकर उसके लिए किस तरह एक एक पैसा जोड़ती थी ये सोच लड़की जवान हो रही है उसके पास दो जोड़े ज्यादा होना जरूरी है और वो सभी के ब्याह  और हर  त्योहार पर एक वही  जोड़  पहन लेती थी जिसे वो अलमारी में सहजकर रखती थी  कितना समझाते  थे माँ  को ,पर वो किसी की नहीं सुनती नहीं थी यूँ तो  पिता सरकारी कर्मचारी थे पर अपने भाइयो से अत्यधिक मोह वश घर में कुछ बचने नहीं दिया ।

बैठी सोच रही थी रूरकी कॉलेज तक पुहँचने में उसे काफी लम्बा रास्ता तय करना पड़ा था अब वो यहां से कुछ बनकर ही निकलेगी।दिन रात फिर दिए के लौ से जलती थी ताकि उजाला बन सके,  इसलिए  अंधेरो को अपनी मेंहनत की धार से काट रही थी तभी उन दिनों जहाँ  कई लोगो से दोस्ती हुई ,वहीं कोई धीरे धीरे ,हल्की आहट से दिल में जगह ढूंढने  लगा ।

कुछ हवायें इतनी सुहानी होती है की उनका बहता रहना तन और मन को बहुत अच्छा लगता है हलकी ब्यार
बह चली थी अब जलता सूरज जो रोज़ आग के गोले की तरह  बरसाता था ठंडा रहने लगा, तपती कंक्रीट की बनी सड़के  ऐसी, जैसे  उन पर हर वक़्त ठंडा पानी छिड़का  गया हो ।  आह !! प्रेम बरसने लगा था बदलो से, प्रेम उगने लगा था पत्थरों में

दिन पर दिन बीत रहे थे प्रेम परवान चढ़ रहा था , प्रेम के रंग निखर  निखर रहा था,वो सब भूलने लगी थी, सारी  दुनियाँ।  उसको, ये प्रेम की दुनियाँ, कहाँ ले  जाएगी  उसे भी नहीं पता था,बस हवाओं में झूल रही थी
बरस बीत रहे थे उसकी  सहेलियां उसे हेय नज़रो से  देखती  थी जैसे उसने कोई  छूत की बीमारी लगा ली हो  , सबकी नज़रो में वो कुछ नहीं थी कोई ख़ाक भी नहीं,उसे पर क्या फ़िक्र थी उसे पता था प्रेम सर्वश्रेस्ठ अभिव्यक्ति हैंप्रेम ने पूरी तरह से  उसे  नास्तिक बना दिया था  ईश्वर तो कोई नहीं, प्रेम ही है

बरस बीत रहा था प्रेम भी बदलने लगा ठंडी हवायें गर्म लू होकर तन को छूने लगी, मन जलती धूप आंगर की तरह जलता,उसका प्रेम उसका था ही नहीं, वो किसी का नहीं था ,वो एक  बुलबुला था जो कुछ देर के लिए
 उसके साथ ठहरा और फिर फूट गया,उसको अब सच समझ आया । सड़के तपती थी सूरज के जलने पर, पानी कितनी भी डाला जाए वो आग की तरह जलकर  पैरो के तलवो को छील देती है  सूरज अघेंटी बन जल रहा था    जिसकी जरूरत गर्मियों में बिल्कुल  नहीं  थी। क्या कसूर हुआ ,प्रेम ?? सिर्फ  प्रेम  करना ,भुला दिया खुद को , मान,अपमान सब,पर प्रेम कहाँ  सबके लिए और न ही उसके लिए सब बने होते है

   बेच कर घर सोना चाँदी ,मोलने चला मैं प्रेम
   प्रेम की कीमत कोई बाचो मुझे ,खड़ा सड़क
   पर, हाथ में  चिमटा लिए  घूमे दर दर फकीर

कोई नहीं बचा था उसके पास सब दोस्त सब सखियाँ  सबके लिए वो अछूत हो गयी थी , सबकी निगाहे उसे अजीब नज़रो  से देखा करती थी  प्रेम नहीं पाप किया था उसने ,दिया ही तो था लिया तो कुछ नहीं,फिर ,
फिर क्या गुनाहा था ??
 इस दुनिया के सबसे बड़ी विडम्बना है की सब लोग प्रेम के लिए तरसते है और उसकी कीमत लगाने में नाकाम हैं ये समाज ही ऐसा है जो दो चहरे लगाये हुए घूमता है एक वो जिसमे आप सिर्फ उतना ही देखते है जिससे उसकी कीमत लगाई जा सके  और  दूसरा वो  चेहरा जो  वास्तव में  खाली है जिस की कोई कीमत नहीं,गरीब है चेहरा, वो ,जो प्रेम के लिए भूखा है तरसा है

 वक़्त बीता , वो चलती रही और पहुंच गयी मंज़िल पर।  आज  वो एक mnc   में खडी है  और शाम को कुछ पुराने दोस्तो से मिलना है  १० साल  बाद ,इस सोच में है,उत्साहित हैं  तब  अचानक से फ़ोन बजता है और उसे  होश आता है। खुश है वो  ज़िन्दगी से ,सब कुछ मिला है उसे ,मान सम्मान, दोस्तों से मिलाने में कोई झिझक नहीं ये सोच ऑफिस छोड़ निकलती है

दोस्त सब महफ़िल लगाये बैठे है खुश है सब एक दूसरे से मिलकर चहक  रहे  है सब कुछ बहुत खूबसूरत सा
है और ये भी बहुत ख़ुशी से मिलने  आती है तब कुछ  देख मुंह फेर लेते है  कुछ झूठा दिखावा करते है
और वो  वहीं  रह जाती है  अछूत............प्रेम से  छुइ हुई

Sunday, February 8, 2015

यूँही कुछ बुना मैंने भी

मन बिनता है कंकड़ ,
हाथ बिनता है चावल
मन कंकड़ छोड़त 

नहीं ,हाथ साधे चावल
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दूर कर दिया लोगो  ने  उसे
यूँही कुछ तो  होता नहीं
सोने का दाम बड़े है शहर में
सच्चा सोना बिकता नहीं
औने -पौने  दाम में
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नथ में धरती देखूं
बिंदिया में चाँद
अब कोनसा जेवर लूँ
पैरों से जब बंधा है आसमान
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मन खोजत है जग
तन खोजत है तन
बुना  ताना -बाना
सुनो न दर्ज़ी तेरी
बुनाई में बड़े रंगीन छेद
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सड़को के पार दौड़ता है
पेट में जलाये मशाल
खेल की शुरुआत में
जलाये जो आग ,
अंत तक  न बुझे
अखबार की पुरानी खबर
गरीब की मौत भूख से हुई
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चला संभालने जग मुआ
संभाला नहीं खुद से मन
 मैं,मैं ,चिल्लाया बार बार
गली नुक्कड़  मांगे  भीख
न मिली कुर्सी ,न जग माया
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जायका नमकीन

आसमान को छूने इमारतों ने हाथ ऊपर किये
ज़मीन से लिपटे छोटे मकान सुस्ता रहे

तुलसी के चक्कर
घंटी की धवनि
सुबह की अज़ान
मन की चहक
ज़मीन पर बिखर रही है
आसमान के परिंदे
झूलते रहे ,रात भर
सुनो न , रात के परिंदो
ने बहुत पी ली थी
आँख खुली नहीं
आसमान की  जुबान
का जायका  नमकीन
टकीला शॉट अभी
भी बिखरा है मन पर

Friday, January 23, 2015

लफ्ज़

जब सारे सामान,
काम के और बेकार के
बिक रहे थे कम -बढ़ दाम  में
और लोग भी बिक रहे थे
अपने बोली  लगा लगा कर

तब, मैं लफ्ज़
 की बोली लगाने के
लिए बन गया लेखक या कवि

कीमत समझ सके
 इसलिए अब मैं
बेचता हूँ लफ्ज़
जो जहन में तुम्हारे
उगाये नए  बोली के पेड और
दाम की ख्वाइश
***************************
जब औरते खरीद रही थी
दीवानी होकर सोना तब
लफ्ज़ को उछाल मैने
दाम बड़ा दिए ,
अब सोचता हूँ
की काश मैं औरत
बन सकूँ,
जो पहनकर
घूमेंगी बिखरे ,
उजड़े, भटकते
मचलते शब्द की माला,
सोने से बड़े दाम में

Saturday, January 10, 2015

चिट्टी दोस्त के लिए

 सूचना :संकीर्ण  दिमाग वाले इसे न पढ़े , दिल का दौरा पड़ने की संभावना  हो सकती  है इसलिए प्लीज अपना  ध्यान रखे ॥ 



दोस्त क्या कहूँ ,प्रेम को तो इतना बड़ा कर दिया है की उसके लिए अब कुछ कहने को बचता ही नहीं,पर साथ साथ ही प्रेम के नए मायने ,नए अर्थ दे डाले है | सभी करते  है प्रेम , बड़ी बड़ी बाते  करते  है कोई कुछ नहीं करता,पता नहीं  , पर तुम सब  दिल के पार उतर गए  हो, जैसे किसी नदी के दोनो किनारो पर   जब लोग खड़े हो   तो थोड़ा थोड़ा धुंधला दिखाई देता  है  और, एक दूसरे को आमने सामने होने पर बिलकुल साफ़ , तुम सब  मेरे दिल के उस पार खड़े हो जहाँ मैंने तुम लोगो को  साफ़ देख सकती हूँ महसूस कर सकती हूँ ,

जानते हो उन दिनों जब हम दिन रात सभी एक ही छत के नीचे  रहकर साथ काम करते थे तब पता नहीं था की मशीन पर काम करने वाले कभी मशीन नहीं हो सकते , हमारी लगभग ८० की टीम थी फिर भी सब एक दूसरे के लिए होते चले गए । हमारी सुबह ६ बजे शरू होती थी और रात का पता नहीं ,हमे मजबूरन सोने के लिए उसका वक़्त भी मुकर्रर करना पड़ता  था क्योंकि अगला दिन फिर वैसे ही होना  है ,हम मिनी साइंटिस्ट जैसे काम करते थे दिन रात, ताकि हमारा आने वाला कल बेहतर हो सके , बेशक मशीन हमारी ज़िन्दगी थी मगर सीने में  दिल तभी था ,जो धड़कता था , हम सब लोग एक दूसरे से कैसे जुड़े, कोई नहीं बता सकता , पर हम सब मुहब्बत  में थे , बड़े ही  सुहाने दिन थे , ऐसा हम आज भी कहते है 

तुम सबको  कितनी फ़िक्र होती थी मेरी , तुम सब मेरे लिए इतना परेशान होते थे   जैसे ही मैं अपना काम खत्म कर अपने रूम पर जाने लगाती तो , वो याद है ,जो मेरे शहर के बगल वाले शहर में रहता था वो  दौड़ दौड़कर कर मुझे रूम तक छोड़ने  आता है ताकि गहरी, अँधेरी रात से मैं डर  न जाऊ , बिना बोले मेरे साथ चलता , क्या दिन थे वो भी ,,
तुम सब  मेरी फ़िक्र बहुत करते थे मेरे लिए उन दिनों में  प्यार , सिर्फ खुद की पहचान को भूलकर दूसरे के लिए कुछ भी करना, सही गलत कुछ भी , मेरे फ़िक्र तुमको इसलिए रहती थी की मैंने खुद को दूसरे में तलाशने लगी , और मेरी तलाश  सही  नहीं थी , ये बात तुम सबको पता थी और  मुझ तक ये बात लायी गयी , पर मुझे
जैसे किसी जादू ने अपने घेरे में कर रखा हो , मैं कुछ मानने को तैयार ही नहीं ,

प्रेम गलत नहीं , पर हक़ीक़त में तुम ने सब ने मुझसे  जो प्यार किया वो शायद चंद लोग ही समझ पाएंगे , प्यार  ज़िस्म से ज़िस्म के पार जाना  नहीं ,  हाँ मगर   ये बड़ा  खूबसूरत सा एहसास है जिसके लिए चांदनी रातो का   होना जरूरी नहीं , या  डेट की, या महंगे तोहफों  की भी जरूरत नहीं ।   ये एक ऐसा मीठा सा एहसास है जो तुम लोगो ने जी भर  के दिया मुझे ,ये सिर्फ आँखों से शुरु  होकर  आँखों तक सफर है या इतने सालो के बाद  जहाँ बिना कुछ कहे हम आज भी साथ है तकरबीन 13 -14  के बाद  भी तुम लोग  मेरी फ़िक्र करते हो ,मुझसे  मीलो  दूर  रहकर भी ।  मुझे तुम सबसे मुहब्बत है , ये एहसास किसी लिंग का भी मुहताज नहीं , बस मुहब्बत है  और मैं  प्यार में हो। । थैंकू यू  नहीं कहूँगी हाँ लव यू  आल जरूर  कहूँगी। फिर एक चिट्टी लिखूंगी, मुझे तुम सब  पढ़ते रहना और सुनते रहना  :) मेरे दोस्त।