Friday, January 23, 2015

लफ्ज़

जब सारे सामान,
काम के और बेकार के
बिक रहे थे कम -बढ़ दाम  में
और लोग भी बिक रहे थे
अपने बोली  लगा लगा कर

तब, मैं लफ्ज़
 की बोली लगाने के
लिए बन गया लेखक या कवि

कीमत समझ सके
 इसलिए अब मैं
बेचता हूँ लफ्ज़
जो जहन में तुम्हारे
उगाये नए  बोली के पेड और
दाम की ख्वाइश
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जब औरते खरीद रही थी
दीवानी होकर सोना तब
लफ्ज़ को उछाल मैने
दाम बड़ा दिए ,
अब सोचता हूँ
की काश मैं औरत
बन सकूँ,
जो पहनकर
घूमेंगी बिखरे ,
उजड़े, भटकते
मचलते शब्द की माला,
सोने से बड़े दाम में

Saturday, January 10, 2015

चिट्टी दोस्त के लिए

 सूचना :संकीर्ण  दिमाग वाले इसे न पढ़े , दिल का दौरा पड़ने की संभावना  हो सकती  है इसलिए प्लीज अपना  ध्यान रखे ॥ 



दोस्त क्या कहूँ ,प्रेम को तो इतना बड़ा कर दिया है की उसके लिए अब कुछ कहने को बचता ही नहीं,पर साथ साथ ही प्रेम के नए मायने ,नए अर्थ दे डाले है | सभी करते  है प्रेम , बड़ी बड़ी बाते  करते  है कोई कुछ नहीं करता,पता नहीं  , पर तुम सब  दिल के पार उतर गए  हो, जैसे किसी नदी के दोनो किनारो पर   जब लोग खड़े हो   तो थोड़ा थोड़ा धुंधला दिखाई देता  है  और, एक दूसरे को आमने सामने होने पर बिलकुल साफ़ , तुम सब  मेरे दिल के उस पार खड़े हो जहाँ मैंने तुम लोगो को  साफ़ देख सकती हूँ महसूस कर सकती हूँ ,

जानते हो उन दिनों जब हम दिन रात सभी एक ही छत के नीचे  रहकर साथ काम करते थे तब पता नहीं था की मशीन पर काम करने वाले कभी मशीन नहीं हो सकते , हमारी लगभग ८० की टीम थी फिर भी सब एक दूसरे के लिए होते चले गए । हमारी सुबह ६ बजे शरू होती थी और रात का पता नहीं ,हमे मजबूरन सोने के लिए उसका वक़्त भी मुकर्रर करना पड़ता  था क्योंकि अगला दिन फिर वैसे ही होना  है ,हम मिनी साइंटिस्ट जैसे काम करते थे दिन रात, ताकि हमारा आने वाला कल बेहतर हो सके , बेशक मशीन हमारी ज़िन्दगी थी मगर सीने में  दिल तभी था ,जो धड़कता था , हम सब लोग एक दूसरे से कैसे जुड़े, कोई नहीं बता सकता , पर हम सब मुहब्बत  में थे , बड़े ही  सुहाने दिन थे , ऐसा हम आज भी कहते है 

तुम सबको  कितनी फ़िक्र होती थी मेरी , तुम सब मेरे लिए इतना परेशान होते थे   जैसे ही मैं अपना काम खत्म कर अपने रूम पर जाने लगाती तो , वो याद है ,जो मेरे शहर के बगल वाले शहर में रहता था वो  दौड़ दौड़कर कर मुझे रूम तक छोड़ने  आता है ताकि गहरी, अँधेरी रात से मैं डर  न जाऊ , बिना बोले मेरे साथ चलता , क्या दिन थे वो भी ,,
तुम सब  मेरी फ़िक्र बहुत करते थे मेरे लिए उन दिनों में  प्यार , सिर्फ खुद की पहचान को भूलकर दूसरे के लिए कुछ भी करना, सही गलत कुछ भी , मेरे फ़िक्र तुमको इसलिए रहती थी की मैंने खुद को दूसरे में तलाशने लगी , और मेरी तलाश  सही  नहीं थी , ये बात तुम सबको पता थी और  मुझ तक ये बात लायी गयी , पर मुझे
जैसे किसी जादू ने अपने घेरे में कर रखा हो , मैं कुछ मानने को तैयार ही नहीं ,

प्रेम गलत नहीं , पर हक़ीक़त में तुम ने सब ने मुझसे  जो प्यार किया वो शायद चंद लोग ही समझ पाएंगे , प्यार  ज़िस्म से ज़िस्म के पार जाना  नहीं ,  हाँ मगर   ये बड़ा  खूबसूरत सा एहसास है जिसके लिए चांदनी रातो का   होना जरूरी नहीं , या  डेट की, या महंगे तोहफों  की भी जरूरत नहीं ।   ये एक ऐसा मीठा सा एहसास है जो तुम लोगो ने जी भर  के दिया मुझे ,ये सिर्फ आँखों से शुरु  होकर  आँखों तक सफर है या इतने सालो के बाद  जहाँ बिना कुछ कहे हम आज भी साथ है तकरबीन 13 -14  के बाद  भी तुम लोग  मेरी फ़िक्र करते हो ,मुझसे  मीलो  दूर  रहकर भी ।  मुझे तुम सबसे मुहब्बत है , ये एहसास किसी लिंग का भी मुहताज नहीं , बस मुहब्बत है  और मैं  प्यार में हो। । थैंकू यू  नहीं कहूँगी हाँ लव यू  आल जरूर  कहूँगी। फिर एक चिट्टी लिखूंगी, मुझे तुम सब  पढ़ते रहना और सुनते रहना  :) मेरे दोस्त।