सुबह सुबह अपनी रूह की निखारने का वादा खुद से किया है रोज़ उसे धोया करूँ ताकि हज़ारो की परत में मेल जो चढ़ी है उसे निकाल सको, निकाल सको अपनी बेचैन रूह को इन पन्नो पर । इतना आसान भी नहीं ये , क्योंकी मैं बहुत जल्दी वादा तोड़ देती हूँ । कारण कोई भी हो ,पर टिक नहीं पाती। कभी घर के हज़ार काम बुलाते है तो कभी बच्चो के काम , कभी मेरे पेन्डिग पड़े काम चीख चीख कर आवाज़ देते है ,तो कभी वो किताबे जो मुझे पढनी है या फिर वो किताब जिन्हे पढने के लिए मैंने अपनी पढाई वापस शुरू की है । कभी कभी मेरे स्टूडेंट्स की क्लास चिल्ला -चिल्ला कर आवाज़ देती है । कुछ भी तो नहीं छोड़ पायी हूँ । बस एक नौकरी बहार नहीं की,सब घर से शुरू कर दिया,बच्चो का मोह इतना बांधता है की अपने बारे में ज्यादा सोचा ही नहीं जाता , सोचोगे तो हज़ार गिल्ट लेकर,मगर खुद को ज़िंदा रखने के लिए साँसों के अलावा भी बहुत कुछ जरूरी है। ऐसी ही आकर दुनिया से चले जाना ,गवारा नहीं,इसलिए हर जगह हाथ पैर चलाती रहती हूँ। मेरे भटकती आत्मा को थोड़ी शान्ति मिले उसे लगे की उसे नहीं नाकारा मैंने,उसका ध्यान रखा है कुछ इंस्पायर होती हूँ कुछ अपनी रूह की सुनती हूँ
चलो देखते है कितने ईमानदारी रख पाती हूँ मैं
चलो देखते है कितने ईमानदारी रख पाती हूँ मैं
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