Tuesday, March 10, 2015

सपना

एक देश था  उसका  कोई राजा और रानी नहीं था  पर उसकी अवाम थी  जो अपने मन का खा रही थी  पहन रही  थी  ओढ़  रही थी लड़कियाँ लड़को सी आज़ाद थी कही भी किसी भी वक़्त आने जाने के लिए । तब  भी, जब सूरज अपनी छाती पर आग से पड़े फफोलो  पर  चाँद की चांदनी का महरम लगाकर किसी कोने में सो रहा होता था । लड़कियाँ  बेधड़क  घूमती थी

कोई माँ अपना गर्भ दिखाने  नहीं जाती थी उन दिनों में, उस राज्य  में । लड़कियाँ के आने की भी धूम होती थी पृथ्वी की उन्नति की दुआ ठहरी रहती थी

काश ....

उठ री  आज का दिन दिया है डॉ ने तुम्हारे एबॉर्शन का। य़े लड़की नहीं चाहिए , मुझे बेटा चाहिए  वंश के लिए.....
किसी गांव का घर, जिस की छत पर आग से जलता सूरज खड़ा तमाशा देख रहा था सोच रहा था अभी चाँद क्यों नहीं आया चांदनी लेकर ,जबकि लड़की को मिटाने वाले आ  गए ।

सूरज के डूबने  का वक़्त लड़की के मिटने से तय होता है अब।




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