Wednesday, March 4, 2015

जीना है मुहब्बत से

जब अक्सर  खुद  के साथ  बैठती हूँ तो खुद को छुट्टे सिक्को की तरह  पाती हूँ । जो यहां  वहां छुट्टे से पड़े रहते है साथ करने पर बजते तो बहुत है पर बंधे हुए नोट की तरह एक साथ खर्च नहीं हो सकती । मुझे तो  खर्च होना भी  है तो  आहिस्ता आहिस्ता ,चिल्लर हूँ बज बज कर ही चलूंगी ,मन को महसूस कर कर के । खुद से मिलने के लिए मुझे बड़ी जुगत लगानी पड़ती है । कई बार ऐसे कोनो में छिपकर बैठना पड़ता है जहाँ से खुद को सुन सको , कह सको की "मुझे तुमसे प्यार है नीलम  "

क्यों प्यार के लिए  हम दूसरो से शिकायत करते  है । जबकि ये तो  पता  ही  नहीं की हमने आखरी बार खुद से मुहब्बत कब की, मुहब्बत देने की शे है पर खुद के ख़ज़ाने को भरना भी जरूरी है खुद को भरने के लिए खुद के साथ जीना कितना जरूरी है  वर्ना सांस लेना सिर्फ एक रिवायत हैं

मुझे जीना हैं प्रेम से भरकर , मन से भरकर । हर एक सांस ख़ुशी से , क्योंकि मुझे प्यार है खुद से


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