Monday, March 9, 2015

महिला दिवस

महिला दिवस  बहुत जोर शोर से मनाया गया  । बिना ये बात समझे की आखिर ये है क्या  ?? कुछ को दुःख था की ये स्पेसिफिक  महिला दिवस देकर हमारे साथ नाइंसाफी की गयी ,क्या बाकी के दिन  पुरषो के है ।जाहिर सी बात है पुरष -प्रधान समाज में  एक ही दिन महिला का क्यों ??

खैर अपनी अपनी समझ से सभी औरते से मनाती  रही ,इसे अपनी आज़ादी का दिन समझ कर ।

बहराल ,ये दिन औरतो को समानता मिलने की ख़ुशी में  निर्धारित किया गया , ये बात अलग है  की समानता के लिए  आज  भी  औरते अपनी युद्ध पर जुटी हुई है १९०८ में  us ने औरतो को वोटिंग करने  का  अधिकार दिया गया जो अंतरराष्ट्रीय  महिला दिवस के रूप में स्थापित कर दिया गया । इसे मानाने की जरूरत है पर एक सोच के साथ एक समझ के साथ , खुद को ये याद दिलाते रहना चाहिए की चलना अभी बहुत है थकने से पहले , टूटने से पहले  और बिखरने से पहले ,आसमान और ज़मीन पर  पुरष और स्त्री का भेद हटाकर ।

ये सबको पता है अच्छा और बुरा दोनों ही लिंग में है  मगर फिर भी  कदम से कदम मिलें तभी कंधो से कंधो से मिलेंगे ।

वैसे मेरे मन था आज India's  daughter के  बारे में लिखने का, क्योंकि वो भी एक औरत थी और जो शहीद हुई है औरतो की लड़ाई के लिए जो  नींव  का पत्थर  बनी है उन्हें  मेरा  शत -शत प्रणाम ।

अजीब सी बात है दुनिया के सभी मुल्को में आये दिन रेप  , बच्चो के साथ अनैतिक  व्यवहार होता है औरतो के साथ  अन्याय होता है ,होता रहता है तब कोई चैनल उन बातो पर डाक्यूमेंट्री बनाकर दर्शको को क्यों नहीं दिखाते ?? लीजिये फिर गलत समझने लगे , मैं तो महज एक सवाल कर रही हूँ।

पूरी दुनिया के पुरुषों  की सोच  में औरत सिर्फ ऑब्जेक्ट ऑफ़ डिजायर ही है किस तरह उसे हासिल किया जाए।अजमाइश  के लिए चाहे  तो पूरी  दुनियाँ में एक साथ अँधेरा कर दीजिये फिर देखिये मुट्ठी भर पुरष ही मिलेंगे जो  उनके मन और उनके  सम्मान की फ़िक्र करते हो ।

 हमारे देश की धज्जियां  कोई भी उड़ने आ जाता है हम घर वाले  ही अपनी लाज नहीं बचाते । तो बाहरी लोग से क्या उम्मीद ??जब कोई सड़क  पर मर रहा हो ,बुरी हालत में हो तब हम अपना भला और भलाई सोच निकल जाते है और दूसरे दिन उस हादसे का दुःख मानाने के लिए कैंडल्स  लिए घूम रहे होते है

मेरा भारत  महान ,फिर india 's daughter  देख भारत को गालियाँ  दे रहे होते है । कौन है ये भारत  ?वो जिस पर डाक्यूमेंट्री  बनी  या वो  जो सड़क पर मुंह फेरकर  चलता है या  वो  कैंडल्स लेकर प्रोटेस्ट मार्च में  खडा हुआ  या वो जो पुरुषों  से जूझ रहा था बस के अंदर ??

पता नहीं औरतो के लिए कौन सी जगह है ??जहाँ वो लिपस्टिक लगाएगी , डिज़ाइनर कपडे पहन सके और ऐसे फुदक सके जैसे अपने घर के आँगन में हो ,पर दुःख तो यही है आँगन भी अब सुरक्षित नहीं। ....

महिला दिवस फिर आएगा एक नयी सोच और एक नयी लड़ाई लेकर। तब तक के लिए  महिला दिवस की ढेरो बधाई।

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