Saturday, April 4, 2015

बुद्ध

जब लोग ज़मीन की खुदाई कर
रहे थ और खेतो में हल चलाकर
बीज बो रहे थे, तभी, ठीक तभी
मैं खुद के जन्म होने का इंतज़ार
कर रही थी
मैं भ्रूण हो गयी थी
मैं एक भ्रूण की तरह
एक अंडे में चली गयी
जिससे सभी मेरे अंगो का
मेरे दिमाग़ का वापस जन्‍म
हो , जन्म हो मेरी नयी सोच का
जन्म हो मेरी नयी दृष्टि का
जन्‍म हो नये मन का
मैं उसी तरह जैसे
बुद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे
बैठकर बुद्ध बने
मैं  भी उसी तरह का
गर्भ में रहकर  अपने बुद्ध होने के
जन्‍म में लगी थी

आस पास सभी ईश्वर थे
वो भी जो मेरे पास आकर
कटोरी नीचे रख हाथ फैलाकर
भीख माँग रहा था
और वो औरत भी जो अपनी
ग़रीबी का सौदा अपने ही जिस्म
से कर रही थी
वो भी ईश्वर ही था
जो लोगो की हत्या कर
पैसे बना रहा था
और वो नेता भी जो सिर्फ़
अपना घर के लिए हम सबका
घर लूट रहा था

ईश्वर वो भी था जिसने
निर्भया को भय दिया
ईश्वर तुम भी हो
पर इंसान कोई भी नहीं
और मैं, मैं तो बुद्ध होकर
नया जन्म लेना चाहती हूँ
जिससे मैं खुद को सही
प्रमाणित कर सकूँ

तुम जब आओ मेरे पास
तो आँखें बंद करके ,
प्रसन्न हो सको
की तुम सुखी हो
और सुख का सिर्फ़ यही मार्ग है

आओ न सब गर्भ में जाए
और नया जन्म ले बंद आँखो
के साथ

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