Friday, April 10, 2015

प्यार,दोस्त

सुबह का वक़्त और हज़ार बातों से मन घिरा हुआ , उलझा सा ,बेटी के लिए लंच तैयार करते करते न जाने कितने ख्याल भी साथ पकते रहे । इतना छोटा सा दिमाग और क्या क्या सोच लेता है कुछ दोस्तों के लिए तो कुछ अपने लिए , दोस्त, कुछ दोस्त बिछड़ जाते है और कुछ नए जुड़ जाते है जुड़ने की ख़ुशी तो कुछ के बिछड़ने का दुःख, दुःख जो ख़ुशी से ज्यादा होता है ऊपर से ये भी नहीं पता हो की लोग आखिर रूठ क्यों जाते है चले क्यों जाते है ??

मैं भी कैसे पगली इस सोशल मीडिया के दोस्तों की बातें कर रही हूँ जो हक़ीक़त में तो कही होते ही नहीं , उन्हें दोस्त मान बैठते है जाने और आने से प्रभावित होते रहते है प्यार बड़ी अजीब शय है किसी से भी हो जाता है। . यार ,प्यार की बात कर रही हूँ इश्क़ की नहीं , मुझे आस पास के हर इंसान से बहुत प्यार हो जाता है मेरी हेल्पर जो है मुझे उस से भी बड़ी मुहब्बत है लेकिन ये बात कोई नहीं समझ सकता। कहाँ में इस प्रैक्टिकल की दुनिया में बिना नफा नुकसान सोचे काम कर रही हूँ वो भी प्यार का । प्यार को एक ही तरह से क्यों परिभाषित किया हुआ है ? ये मेरी समझ के परे है खैर, सब अपनी अपनी सोच से चल रहे है मैं ज्यादा देर तक पीड़ा में नहीं रहने वाली।नही तो मेरी हंसी दुनिया में तन्हा रह जायेगी और मुझसे ज्यादा अवसाद में रहा भी नहीं जाता ॥ ये एक जरिया है जहाँ मैं अपनी बात कहकर हल्की हो जाती हूँ मगर दुःख मनाने की कोई वजह नहीं की मैं दिन रात पीड़ा में रहूँ। शुभ दिन आपका और मेरा भी

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