1) कुछ कच्चे पक्के से गुथे मन
की कविता रच दी
कुछ ने प्रेम की बात
काग़ज़ पर पथरा दी
कुछ ने प्रेम में भागी
लड़की रच दी
कोई उस किसान को क्यो.
नहीं लिखता
जो इस बार बारिश न होने
पर अपनी प्रेमिका से नहीं मिल
पाया ,वादा था कटाई के
बाद मिलने का
पड़े सूखे ने वादा सूखा
दिया ,जैसे रेत में
कोई अरमान प्यास
से तरस कर दम
तोड़ देता है
किसान का प्रेम
सूखा बादल जो आया तो
था पर पन्नो पर
कविता नहीं बन पाया
लंबे रास्ते पर खडे पेड
खामोश है मगर
रस्सी गर्दन में
लगाए झूलते है किसान के लिए
2)
वो माँ कविता क्यो नहीं
होती जो २ रुपये गाँठ में लिए
बीमार बच्चे को गोद मे लिए सोचती है
भगवान आज भी सवा रुपये में
चमत्कार करता है .. डॉक्टर
महंगेहै इस ज़माने के
3)
कविता वो दर्द क्यो नहीं
जो प्रेम के बिना उपजे है
जो पेट में मरोड़ की तरह
पड़ते है
साहब खाना देंगे, ४ दिन से नहीं खाया
4)
मैं कविता ही लिख रही हूँ
प्रेम नहीं.. पर है कविता
सच है ये.. बस मेरा प्रेमी नहीं
इसमे और मैं भी नहीं,पेट के
मरोड़ , खारे पानी वाली सच
की कविता
की कविता रच दी
कुछ ने प्रेम की बात
काग़ज़ पर पथरा दी
कुछ ने प्रेम में भागी
लड़की रच दी
कोई उस किसान को क्यो.
नहीं लिखता
जो इस बार बारिश न होने
पर अपनी प्रेमिका से नहीं मिल
पाया ,वादा था कटाई के
बाद मिलने का
पड़े सूखे ने वादा सूखा
दिया ,जैसे रेत में
कोई अरमान प्यास
से तरस कर दम
तोड़ देता है
किसान का प्रेम
सूखा बादल जो आया तो
था पर पन्नो पर
कविता नहीं बन पाया
लंबे रास्ते पर खडे पेड
खामोश है मगर
रस्सी गर्दन में
लगाए झूलते है किसान के लिए
2)
वो माँ कविता क्यो नहीं
होती जो २ रुपये गाँठ में लिए
बीमार बच्चे को गोद मे लिए सोचती है
भगवान आज भी सवा रुपये में
चमत्कार करता है .. डॉक्टर
महंगेहै इस ज़माने के
3)
कविता वो दर्द क्यो नहीं
जो प्रेम के बिना उपजे है
जो पेट में मरोड़ की तरह
पड़ते है
साहब खाना देंगे, ४ दिन से नहीं खाया
4)
मैं कविता ही लिख रही हूँ
प्रेम नहीं.. पर है कविता
सच है ये.. बस मेरा प्रेमी नहीं
इसमे और मैं भी नहीं,पेट के
मरोड़ , खारे पानी वाली सच
की कविता
No comments:
Post a Comment